Sunday, 13 May 2018

लोक नृत्य

By Anuj beniwal
rajasthan folk dance





           राजस्थान के सांस्कृतिक संम्पदा के अकूत भंडार के कुछ बेशकीमती नगीनों में से कुछ यहां के लोक नृत्य बेहद ही अनमोल एवं अतुल्य धरोहर के रूप में है। ये नृत्य क्षेत्रीय तौर पर अलग-अलग रूप में, अलग-अलग क्षेत्रों पर अलग-अलग विधाओं में नजर आते है।  राजस्थान की सांस्कृतिक सम्पदा के कुछ प्रमुख लोक नृत्य इस प्रकार है- 

क्षेत्रीय नृत्य 

 ढोल जालौर, चंग शेखावटी, घूमर मारवाड़ और जयपुर, झूमर हाडौती, डांग नाथद्वारा राजसमंद, डांडिया मारवाड़, अग्नि कतरियासर (बीकानेर), बंग अलवर भरतपुर, गीदड़ शेखावटी, घूडला मारवाड़, नाहर भीलवाड़ा, बिंदोरी झालावाड़, खारी अलवर भरतपुर, कबूतरी चूरू, पेंजण बागड क्षेत्र।

ढोल नृत्य 

           जालौर क्षेत्र में शादी के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक नृत्य, जिसमें नर्तक कलाबाजियां दिखाते हैं। ढोली, सरकड़ा, भील और माली जातियों द्वारा यह नृत्य किया जाता है। ढोल वादकों का मुखिया थाकना शैली में ढोल बजाता है। 

चंग

            शेखावटी क्षेत्र में होली के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाता है। जिसमें प्रत्येक पुरुष चंग की थाप पर गाते हुए नाचता है। इसमें बांसुरी का प्रयोग भी किया जाता है। 

घूमर 

           (लोक नृत्यों की आत्मा/ लोक नृत्य का सिर मोर/ सामंती नृत्य) यह विशेषकर मारवाड़ और जयपुर का प्रसिद्ध है। घूमर घूम से बना है जिसका अर्थ है, लहंगे का घेर। इस नृत्य में एक विशेष प्रकार की चाल होती है, जिसे सवाई कहते हैं। जब बालाओं द्वारा यह नृत्य किया जाता है, तो झूमरिया नृत्य कहलाता है। 

झूमर 

           हाड़ौती क्षेत्र में महिलाओं द्वारा मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। जिसमें डांडियों का प्रयोग किया जाता है।

ड़ांग

           होली के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य। जो नाथद्वारा (राजसमंद) का प्रसिद्ध है। 

डांडिया 

           मारवाड़ में होली के अवसर पर पुरुषों द्वारा स्वांग रचे जाते हैं। इसमें ढोल और नगाड़े का प्रयोग होता है। 

अग्नि नृत्य 

           जसनाथी संप्रदाय के लोगों द्वारा फाल्गुन और चैत्र माह में रात्रि के समय किया जाता है। धधकते अंगारों (धूणां) पर, जिसके चारों ओर पानी का छिड़काव किया जाता है। इस में पुरुष फतेह फतेह कहते हुए धूणें में प्रवेश करते हैं। इसमें नगाड़ा मुख्य वाद्य यंत्र है।
     यह कतरियासर (बीकानेर) का प्रसिद्ध है। इसे आग के साथ राग और फाग का नृत्य कहते हैं।

बंग

           अलवर और भरतपुर क्षेत्र में होली के अवसर पर नई फसल आने की खुशी में बड़े नगाड़ों (बंग) की ताल पर किया जाता है। बंग के साथ रसिया भी गाया जाता है। अतः इसे बंग-रसिया भी कहा जाता है। 

गीदड़ 

           शेखावाटी क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय नृत्य, जो होली के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसमें नगाड़े तथा शहनाई का प्रयोग किया जाता है। गीदड़ खेलने वाले को गीदडिया और स्त्रियों का वेश धारण करने वाले को गणगौर कहा जाता है। 

घूड़ला 

           मारवाड़ में होली के अवसर पर महिलाओं द्वारा छिद्रित मटका जिसमें दीपक जलता रहता है, सिर पर रखकर नृत्य किया जाता है। 

बिंदोरी 

           झालावाड़ क्षेत्र का प्रमुख नृत्य। जो गेर शैली का होता है, होली के अवसर पर किया जाता है।

नाहर 

           भीलवाड़ जिले के माण्ड़ल गांव में होली के अवसर पर नाहर का स्वांग रच कर ढोल की थाप पर किया जाता है।
     इस का उद्भव शाहजहां के काल में माना जाता है। 

खारी 

           मेवात क्षेत्र में दुल्हन के विदा होते समय उसकी सहेलियों द्वारा यह नृत्य किया जाता है। 

कबूतरी 

           चूरू में पेशेवर महिलाओं द्वारा यह नृत्य किया जाता है।

पेंजण

           यह बांगड़ क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है। 

व्यावसायिक नृत्य 

 व्यावसायिक भवाई भवाई जाति(मेवाड़), कच्ची घोड़ी शेखावटी, 13 ताली पाली, कठपुतली उदयपुर।
rajasthan folk dance

भवाई नृत्य 

           यह राजस्थान का सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक लोक नृत्य है। जो मेवाड़ की भवाई जाति द्वारा किया जाता है। इस नृत्य के जन्मदाता बाघा जी माने जाते हैं। इस नृत्य में मनोरंजक और रोमांचक क्रियाएं होती है। इस नृत्य को उदयपुर के लोक कला मंडल के देवीलाल सामर ने पहचान दिलाई।
     इसमें प्रमुख कलाकार रूप सिंह शेखावत, तारा शर्मा, दयाराम और प्रसिद्ध नृत्यांगना अस्मिता काला है। 

कच्ची घोड़ी 

           शेखावटी क्षेत्र में अत्यधिक प्रचलित, जो पेशेवर जाति द्वारा किया जाता है, इस में बांस की घोड़ी को अपनी कमर में बांधकर रंग-बिरंगे परिधानों में ढोल, बांंकिया और थाली का प्रयोग कर नृत्य किया जाता है। जो अपनी न्यू पैटर्न की कला के लिए प्रसिद्ध है। 
     इसमें 8 नर्तक होते हैं। ढ़ोली और सरकड़ा जाति के लोग इसमें प्रवीण होते हैं। 

तेरहताली 

           इसका उद्भव पातरला ग्राम (पाली) से माना जाता है। यह नृत्य कामड़िया पंथ की महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसमें प्रमुख कलाकार बनीना गाँव (चितौड़गढ़) की मांगीबाई, जिन्हें सन 1990 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। 

कठपुतली 

             कठपुतली आडू की लकड़ी की बनी होती है। इस नृत्य को पहचान देवीलाल सामर ने दिलाई। कठपुतली नचाने वाले को नट कहा जाता है।
     यह उदयपुर का प्रसिद्ध है।

1 comment:

  1. Such a captivating post! Rajasthan's folk dances like Ghoomar and Kalbeliya are not just performances—they're vibrant expressions of the state’s rich cultural heritage. I loved how you described the costumes, rhythms, and stories behind each dance form!

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