चिर नवोढा राजस्थानी संस्कृति सदा से ही कला के प्रति समर्पित रही है।
इन्हीं कलाओं में से नाट्य कला एक प्रमुख कल रही है।
अपनी कला संपदा में प्रचुर संपदा लपेटे राजस्थानी संस्कृति में कुछ प्रमुख लोक नाट्य निम्नानुसार हैं-
इन्हीं कलाओं में से नाट्य कला एक प्रमुख कल रही है।
अपनी कला संपदा में प्रचुर संपदा लपेटे राजस्थानी संस्कृति में कुछ प्रमुख लोक नाट्य निम्नानुसार हैं-
राजस्थान के प्रमुख लोक नाट्य
भवाई,
नौटंकी,
स्वांग,
लीला,
रासलीला,
ख्याल,
तमाशा,
रम्मत,
फड़,
गंवरी,
चारवेत,
कठपुतली,
गंधर्व नाट्य और
कन्हैया दंगल
भवाई-
'जस्मा-औढण' सांता गांधी द्वारा लिखित नृत्य नाटिका जिसमें 'सगो जी सगा जी' के रूप में लंदन और जर्मनी में प्रस्तुत किया गया।
बाड़मेर के सांगीलाल सांकड़िया नृत्य मणि के रूप में विख्यात है। उन्होंने बीजिंग में 6 किलोमीटर की परिधि वाले मंच पर भवाई नृत्य प्रस्तुत किया।
वर्तमान में बाड़मेर के स्वरूप सिंह पवार प्रसिद्ध है।
नौटंकी
अलवर, भरतपुर, करौली, सवाई माधोपुर और धौलपुर में लोकप्रिय है। यह मांगलिक अवसरों पर किया जाती है। भरतपुर और धौलपुर में नत्थाराम की मंडली प्रसिद्ध है।
कामांं भरतपुर के गिरिराज प्रसाद इसमें प्रसिद्ध है। ज्यादातर हाथरस शैली की नौटंकी प्रसिद्ध है।
स्वांग
स्वांग रचने वाले व्यक्ति को बहरूपिया कहा जाता है। यह हास्य प्रधान नाटक होता है। इसे खुले मंच पर प्रदर्शित किया जाता है। भरतपुर में होली के अवसर पर किया जाता है। यह मारवाड़ में भी प्रचलित है। इसमें धन रूप भाण्ड प्रसिद्ध है।
इसमें भीलवाड़ा के जानकी लाल भांड विश्व प्रसिद्ध है। जिन्हें मंकीमैन भी कहा जाता है।
रासलीला हेतु प्रथम नाटक मोतीलाल जाट ने लिखा था।
राजस्थान में कई तरह की ख्याल प्रसिद्ध है। जैसे-
इसकी शैली को माच कहां जाता है।
तुकनगीर भगवें कपड़े पहनता था और शाह अली हरे रंग के। तुर्रा तुकनगीर को और कलंगी शाह अली को भेंट की गई।
होली के दिन जोगी जोगन का तमाशा, होली के दूसरे दिन हीर रांझा का तमाशा और शीतलाष्टमी को जूठन मियां का तमाशा खेला जाता है।
रम्मत खेलने वाले को खेलार या रम्मतीया कहा जाता है।
इस कला को श्रीलाल जोशी ने विश्व प्रसिद्धि दिलाई।
इसमें भीलवाड़ा के जानकी लाल भांड विश्व प्रसिद्ध है। जिन्हें मंकीमैन भी कहा जाता है।
लीला
इसमें धर्म और लोक तत्व को प्रधानता होती है।रास लीला
श्री कृष्ण के जीवन चरित्र पर आधारित होता है। इसका अभिनय अभिनय करने वालों को रासधारी कहा जाता है। भरतपुर में इसका आयोजन अधिकतर होता है।रासलीला हेतु प्रथम नाटक मोतीलाल जाट ने लिखा था।
ख्याल
इसमें नगाड़ा तथा हारमोनियम बजाया जाता है, क्योंकि यह संगीत प्रधान नाटक है। इसका सूत्रधार हलकारा कहलाता है।राजस्थान में कई तरह की ख्याल प्रसिद्ध है। जैसे-
कुचामनी ख्याल
इसके प्रवर्तक लच्छीराम थे। जिन्होंने मीरा मंगल और गोगा चौहान की रचना की।हेला ख़्याल
(लम्बी टेर) यह लालसोट (दौसा) और सवाई माधोपुर मैं प्रसिद्ध है। इसके प्रवर्तक 'हेलाशायर' हैं। इसमें नौबत का प्रयोग किया जाता है।अली बख्शी की ख्याल
अलवर में यह प्रसिद्ध है। इसका उद्भव राजा अली बख्श के शासन काल के समय हुआ था।शेखावटी ख्याल
चिड़ावा के नानूराम राणा और दुलिया राणा प्रसिद्ध कलाकार रहे हैं। इनमें से नानूराम ने हीर रांझा, हरिश्चंद्र और ढोला मारु की रचना की है।तुर्रा कलंगी
हिंदू संत तुकनगिर और मुस्लमान संत शाह अली इसके प्रवर्तक माने जाते हैं। मेवाड़ में इसका मंचन किया जाता है। इसमें मुख्य वाद्य चंग होता है।इसकी शैली को माच कहां जाता है।
तुकनगीर भगवें कपड़े पहनता था और शाह अली हरे रंग के। तुर्रा तुकनगीर को और कलंगी शाह अली को भेंट की गई।
तमाशा
यह मुलतः महाराष्ट्र का प्रसिद्ध है। जो आमेर के महाराजा मानसिंह प्रथम के समय आमेर में हुआ। जयपुर के महाराजा प्रताप सिंह ने तमाशा के प्रमुख कलाकार बंशीधर भट्ट को आमेर में आश्रय प्रदान किया। तब से भट्ट परिवार इसका आयोजन करता आया है। इसके फूल जी भट्ट प्रसिद्ध है।होली के दिन जोगी जोगन का तमाशा, होली के दूसरे दिन हीर रांझा का तमाशा और शीतलाष्टमी को जूठन मियां का तमाशा खेला जाता है।
रम्मत
जैसलमेर और बीकानेर क्षेत्र की ख्याल को रम्मत नाम से जाना जाता है। बीकानेर में इसे पाटा संस्कृति के नाम से जाना जाता है। जिसमें प्रमुख रम्मत अमर सिंह राठौड़ री रम्मत और हेंडाऊ मेरी री रम्मत प्रसिद्ध है।रम्मत खेलने वाले को खेलार या रम्मतीया कहा जाता है।
फड़
यह चित्रकला की विशिष्ट शैली है। जिसे भोपा प्रस्तुत करते है। यह 30 फीट लंबा और 5 फीट चौड़े कपड़े पर बनाया जाता है। इन पर लोक देवताओं का जीवन चरित्र चित्रित रहता है।इस कला को श्रीलाल जोशी ने विश्व प्रसिद्धि दिलाई।
0 comments:
Post a Comment