Sunday 14 January 2018

कलादान परियोजना

By Anuj beniwal
kaladan project
           कलादान परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे प्रभावी दूरदर्शी परियोजनाओं में से एक मानी जा रही है। यह परियोजना तीन अलग-अलग रास्तों से पूरी होगी।

कलादान परियोजना 

कलादान परियोजना क्या है?

           दरअसल कलादान मयानमार में बहने वाली एक नदी है। जिसके नाम पर इस पूरी परियोजना का नाम पड़ा है। इस परियोजना में कोलकाता के हल्दिया बंदरगाह से म्यांमार के सित्वे समुद्री बंदरगाह तक एक समुद्री रास्ता बनाया जाएगा। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि म्यांमार के इस सित्वे बंदरगाह का विकास भी भारत ही करेगा और इसकी क्षमता वर्तमान क्षमता से कई गुना बढ़ाई जाएगी। सितवे समुद्री बंदरगाह से कलादान नदी से पलेटवा तक पहुंचा जाएगा। पलेटवा में भारत एक नदी बंदरगाह का निर्माण एवं विकास करेगा। इस प्लेटवा बंदरगाह से भारत के मिजोरम राज्य को सड़क रास्ते से जोड़ा जाएगा। जिससे भारत की उत्तर पूर्वी राज्यों में पहुंच को अधिक प्रभावशाली बनाया जाने का लक्ष्य है। 

कलादान परियोजना का महत्व

           वर्तमान में उत्तर पूर्वी राज्यों से भारत की मुख्य भूमि का जुड़ाव महज सिलीगुड़ी के रास्ते से है। जिसे चिकन स्नेप भी कहा जाता है। क्योंकि यह बहुत ही संकरा है और इससे व्यापक पैमाने पर वस्तुओं और सेवाओं एवम अन्य भारी साजो-सामान का आवागमन बेहद मुश्किल होता है। हाल ही में हुए भारत चीन के बीच डोकलाम विवाद के बाद में कलादान परियोजना बेहद महत्वपूर्ण हो चली है। इससे भारत की सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता कम की जा सकेगी।

कलादान परियोजना का आयाम

          परियोजना के तहत भारत सितवे पोर्ट के पास एक स्पेशल इकोनॉमिक जोन अथवा विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) का निर्माण भी करेगा। यह परियोजना भारत सरकार की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के लिए भी बेहद उपयोगी मानी जा रही है। मौजूदा केंद्र सरकार की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के अनुसार भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों को तत्काल प्रभाव से विकास की मुख्यधारा में लाकर उन्हें अग्रणीय बनाने की योजना है। यहां आधारभूत ढांचे की जबरदस्त विकास के बाद इस भूभाग को सड़क रास्तों से थाईलैंड और म्यांमार जैसे देशों के साथ जुड़ने की एक व्यापक योजना एक्ट ईस्ट पॉलिसी के ही अंग है।

कलादान परियोजना की पृष्ठभूमि और वस्तस्थिती

           कलादान परियोजना प्रथम बार सन 2003 में अटल बिहारी वाजपेई सरकार के समय में सामने आई थी। इस परियोजना को लेकर भारत और म्यांमार के बीच सैद्धांतिक समझौता सन 2008 में हुआ। परियोजना का निर्माण कार्य सन 2010 में शुरू हुआ और इसकी डेडलाइन अगस्त 2015 रखी गई थी। लेकिन धन की कमी के चलते यह प्रोजेक्ट डिले होता गया। 
           इसी विलंब का भुगतान भारत को यह भी भुगतना पड़ा कि दिसंबर 2015 में म्यांमार सरकार ने चीन सरकार से सितवे बंदरगाह के बिल्कुल पास एक चीनी विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने की मंजूरी दे दी।
kaladan project

कलादान परियोजना मे विलंब

           परियोजना का प्रारंभिक लागत मनमोहन सिंह सरकार में 270 करोड रुपए रखा गया। जिसे बाद में मोदी सरकार ने बढ़ाकर 2904 करोड रुपए कर दिया। बजट वृद्धि के बावजूद भी यह परियोजना इतनी आसान नहीं रही और जब 2015 में दोबारा इस परियोजना के लिए टेंडर आवंटित किए गए तो सरकार को कोई आवेदन नहीं मिला। सन 2016 में एकमात्र आवेदन आया जिसे सरकार ने मान लिया एवं मौजूदा स्थिति में इसकी डेडलाइन सन 2019 रखी गई है। अभी भी सन 2019 तक इस परियोजना के संपूर्ण होने की संभावनाएं विरल ही नजर आती है।

कलादान परियोजना में अनियमितता

            इसके अलावा भी इस परियोजना में व्यापक प्रबंधकीय खामियां दिखाई देती है। जो सड़क प्लेटवा से मिजोरम तक बनने वाली है। उसके बारे में अभी तक 4 बार लंबाई नापी जा चुकी है और हर बार सड़क की लंबाई बढ़ाई जा रही है। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि परियोजना बनाने वाले लोगों ने प्रबंधन में कितना लापरवाही बरती है।

कलादान परियोजना का विरोध

           म्यांमार में कलादान नदी के आस-पास रहने वाले लोगों ने इस परियोजना का विरोध भी शुरू कर दिया है। इस विरोध को कलादान मूवमेंट नाम दिया गया है। इन स्थानीय लोगों के अनुसार कलादान नदी में परिवहन के कारण यहां पर्यावरणीय एवं मानवीय हानियां हो सकती है। हालांकि इस आंदोलन के साथ म्यांमार की कोई बड़े नेता अथवा राष्ट्रवादी लोग नहीं जुड़े हुए हैं। अतः यह तो माना जा सकता है कि फिलहाल इस आंदोलन से यह परियोजना बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होने वाली है।

कलादान परियोजना के लाभ

           अगर कलादान परियोजना को हम सही ढंग से क्रियान्वित कर पाते हैं, तो वर्तमान में सिलीगुड़ी कॉरिडोर से मिजोरम तक पहुंचने में 1880 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है, लेकिन इस परियोजना के मूर्त रूप लेने पर यह दूरी महज 930 किलोमीटर की रह जाएगी और लगभग इस दूरी में 1000 किलोमीटर की कमी आ जाएगी। जो इस क्षेत्र के लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगी। 
           विभिन्न वस्तुओं और कार्गो में माल ढुलाई और अतिरिक्त समय व्यय के कारण होने वाली महंगाई से भी बचा जा सकेगा एवं विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को अधिक तीव्रता एवं विशिष्टता के साथ मिजोरम तक पहुंचाया जा सकेगा।



           अगर भारत और चीन की तुलना की जाए तोम्यांमार में कुल विदेशी निवेश का एक तिहाई तो चीन ने महज प्रस्तावित विशेष आर्थिक क्षेत्र में ही कर दिया है। यह विशेष आर्थिक क्षेत्र में 14 बिलियन का निवेश कर रहा है, जबकि भारत की संपूर्ण कलादान परियोजना जिसमें समुद्री मार्ग, समुद्री बंदरगाह, नदी मार्ग, नदी बंदरगाह, सड़क मार्ग और विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाए जाने हैं। इस संपूर्ण परियोजना का बजट 2 बिलियन है।

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