Tuesday 16 January 2018

प्रथम विश्व युद्ध: 1

By Anuj beniwal
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           इतिहास के फलक पर होने वाली सबसे बड़ी जंगों में से एक यह जंग 18 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चली। उस समय इसे विश्वयुद्ध का नाम नहीं दिया गया था। इसे महान युद्ध और युद्ध की समाप्ति वाला युद्ध जैसे नाम दिए गए थे।
           समीक्षकों का आकलन था कि इतनी बड़ी जंग के बाद अगली कुछ सदियों तक शायद विश्व शांत रहे। हालांकि ऐसा नहीं हुआ और कुछ ही समय उपरांत द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। इस विश्व युद्ध में मरने वाले लोगों की संख्या 170,00,000 थी। इनमें सैनिकों की संख्या 110,00,000 और 60,00,000 आम नागरिक मारे गए थे। अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2 करोड़ से भी ज्यादा लोग इस जंग में जख्मी हुए।

प्रथम विश्व युद्ध

           इस युद्ध में लड़ने वाले दो पक्षों में से संयुक्त पक्ष की तरफ से रूस, ब्रिटेन और फ्रांस मुख्य देश थे। 1917 में अमेरिका भी इसमें शामिल हो गया था। जापान भी संयुक्त सेनाओं के साथ था।
            उस समय विश्व के बहुत बड़े भूभाग पर ब्रिटेन और फ्रांस की औपनिवेशिक शक्तियां भी शासन कर रही थी। इस कारण विश्व के बहुत बड़े भूभाग के सामने केंद्रीय यूरोप की शक्तियां जिनमें हैमबर्ग साम्राज्य के ऑस्ट्रिया हंगरी साम्राज्य, जर्मनी और ऑटोमन साम्राज्य मुख्य थे।

प्रथम विश्व युद्ध के कारण 

प्रथम विश्व युद्ध: सैन्य कारण 

           सैन्य कारण इस युद्ध का एक मुख्य कारण था। ब्रिटेन और जर्मनी में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरुप सबसे ज्यादा विकास दर देखी गई थी। इन देशों ने विकास के इस आयाम से अपनी सैनिक शक्ति को चरम तक पहुंचाने की भरपूर कोशिशें की। 
           मशीन गन का आविष्कार भी इसी समय हुआ था और पहली बार प्रथम विश्वयुद्ध में ही मशीनगनों का उपयोग किया गया था। इसके अलावा बड़े-बड़े जहाज बनाए गए, जिन पर अत्याधुनिक किस्म की बंदूके लगाई गई थी। इसी विश्वयुद्ध में पहली बार ब्रिटेन ने टैंक का इस्तेमाल किया था। यूरोप ही नहीं दुनिया भर में सैन्य शक्ति करण का एक नया दौर चल पड़ा था और यह अवधारणा विभिन्न देशों में बनने लगी थी कि वह अपनी सैन्य शक्ति के ताकत पर दूसरे किसी भी देश को पराजित कर सकते हैं।

प्रथम विश्व युद्ध: गुप्त संधियाँ 

           गुप्त संधियों को भी प्रथम विश्वयुद्ध का एक बड़ा कारण माना जाता है। ये गुप्त संधियां यूरोप के देशों के बीच में शक्ति-संतुलन हेतु स्थापित की गई थी। इन संधियों को गुप्त संधियों इसलिए कहा जाता है कि ये द्विपक्षीय या त्रिपक्षीय संधियाँ ही थी। इन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया था। 
           इस तरह की पहली प्रमुख संधि 1882 में हुई। जिसे त्रिपक्षीय मैत्री समझौता अथवा संधि कहा जाता है। यह संधि ऑस्ट्रो हंगेरियन सम्राज्य, जर्मनी और इटली के बीच हुई थी। जबकि दूसरी प्रमुख संधि 1904 में फ्रांस और ब्रिटेन के बीच हुई थी। 1907 में इस संधि में रूस भी जुड़ गया।

प्रथम विश्व युद्ध: साम्राज्य्वाद 

           युद्ध की एक और प्रमुख कारण में साम्राज्यवाद को भी माना जाता है। यूरोप के सभी प्रमुख देश साम्राज्यवाद की इस लहर में कूद पड़े थे। ब्रिटेन इस पूरी दौड़ का नेतृत्व कर रहा था। इसके अलावा स्पेन, जर्मनी, इटली, बेल्जियम, हॉलैंड और पुर्तगाल ने भी अफ्रीका के बहुत बड़े हिस्से पर अपना अधिकार कर लिया था। साम्राज्यवाद की यह आग एशिया और लैटिन अमेरिका के देशों तक भी फैल चुकी थी।
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प्रथम विश्व युद्ध: राष्ट्रवाद 

           राष्ट्रवाद का कारण भी प्रथम विश्व युद्ध के मुख्य कारणों में से एक था। मुख्यतः बाल्कन देशों में उभरे राष्ट्रवाद ने प्रथम विश्व युद्ध के बीजांकुरण का काम किया। ऑटोमन साम्राज्य और ऑस्ट्रो हंगरी साम्राज्य के प्रभुत्व में रहने वाले बाल्कन देशों ने अपनी स्वतंत्रता की कामना की। उनके अनुसार जिस प्रकार जर्मनी और इटली ने अपने आप को एकीकृत कर एक राष्ट्रीय भावना का संचार किया है, तो क्यों ना बाल्कन देशों में भी अपनी एक प्रभुसत्ता स्थापित की जाए।

प्रथम विश्व युद्ध: अन्य कारण 

साहित्य 

           युद्ध के प्रमुख कारण में साहित्य भी रहा। तत्कालीन साहित्य में युद्ध को बेहद गौरवपूर्ण तरीके से स्थापित किया गया। लेखकों, कवियों, नाटककारों, साहित्यकारों ने इस बात को उद्-घोषित किया कि युद्ध ही गौरव की प्राप्ति और सम्मान का प्रतीक हो सकता है। किसी भी देश के स्थायित्व एवं के लिए एक शक्तिशाली एवं सशक्त समर्थ युद्ध अनिवार्य होता है।

वर्चस्व की जद्दोजहद 

            रूस के प्रमुख व्यापारिक मार्गो में से एक कैस्पियन सागर को काला सागर और भूमध्य सागर से जोड़ने वाले रास्ते पर लगातार बढ़ रहे ऑटोमन साम्राज्य के प्रभाव से भी रूस को इस युद्ध में आना पड़ा। रूस नहीं चाहता था कि ऑटोमन साम्राज्य के लगातार बढ़ते प्रभुत्व के कारण उसके व्यापारिक मार्ग पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़े। अतः इस युद्ध में शामिल हुआ।

बाल्कन विवाद 

            पाउडर कैग ऑफ़ यूरोप के नाम से मशहूर बाल्कन देश प्रथम विश्व युद्ध के कारणों में से प्रमुख रहे थे। ये बाल्कन देश ऑस्ट्रो हंगरी साम्राज्य, ऑटोमन साम्राज्य और रूसी साम्राज्य की सीमा क्षेत्रों पर स्थित थे। तीनों विशाल साम्राज्यों के हितों का टकराव बाल्कन क्षेत्र में होता रहा था। यही कारण था कि 19वीं सदी के आरंभ में और 18वीं सदी के अंत में यहां तीन व्यापक युद्ध भी हुए थे।
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प्रथम विश्व युद्ध: पृष्ठभूमि  

           प्रथम विश्वयुद्ध की औपचारिक शुरुआत भी बाल्कन क्षेत्र से ही हुई थी। माजरा कुछ ऐसा था कि 28 जून 1914 को आर्क ड्यूक फ्रेंक फर्डिनेंस की हत्या कर दी गई। आर्क ड्यूक फ्रेंक फर्डिनेंस ऑस्ट्रिया के राजकुमार थे और घोषित रूप से ऑस्ट्रो हंगरी साम्राज्य के भावी सम्राट होने वाले थे। दरअसल राजकुमार अपने साम्राज्य के साराजेवो शहर में अपनी पत्नी के साथ आए थे। वर्तमान में यह शहर बोस्निया में स्थित है। साराजेवो में उन्हें ब्लैक हैंड नाम के संगठन के गैब्रियल प्रिंसेप नाम के व्यक्ति ने गोली मार दी। जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
            इस हत्या के पीछे मुख्य रूप से सर्बिया का हाथ माना जा रहा था। क्योंकि सर्बिया गुप्त रूप से बोस्निया की आजादी की जंग को समर्थन दे रहा था। इस हत्या के बाद सर्बिया को अल्टीमेटम दिया गया, कि वह 6 दिन के अंदर अपनी फौज को समाप्त कर दे और आत्मसमर्पण कर दे और यह कहा गया कि सर्बिया अब ऑस्ट्रो हंगरी साम्राज्य का हिस्सा होगा। 
           बिना युद्ध के ही आत्मसमर्पण कि इस प्रस्ताव पर सर्बिया सहमत नहीं हुआ। उसने युद्ध के लिए रूस से मदद मांगी। रूस को इस क्षेत्र में अपने प्रभुत्व के लिए एक बहाना चाहिए था, जो सर्बिया ने उसे दिया। इसके अलावा रूस और सर्बिया में एक ही स्लोवेन मूल के लोगों के कारण भी रूस ने सर्बिया की मदद की हामी भरी।

प्रथम विश्व युद्ध: घटनाक्रम 

प्रथम विश्व युद्ध: आगाज 

           18 जुलाई 1914 को जर्मनी और ऑस्ट्रिया हंगरी साम्राज्य ने सर्बिया पर युद्ध की घोषणा कर दी। इस घोषणा के तुरंत बाद ही रूस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी। गुप्त संधियों से आबद्ध इन देशों ने युद्ध का आयाम अब बड़ा करना शुरू कर दिया। जल्द ही फ्रांस ने रूस के समर्थन में युद्ध की घोषणा कर दी।

जर्मनी का वर्चस्व 

           युद्ध के व्यापक होते रूप को देखकर जर्मनी ने यह योजना बनाई की रूस की विशालकाय सेना को हराने से पहले क्यों न फ्रांस को हराया जाए। फ्रांस को हराने के लिए जर्मनी ने बेल्जियम का रास्ता चुना। बेल्जियम होते हुए जर्मन सेना फ्रांस के बहुत अंदर तक पहुंच पाने में सफल हुई, हालांकि वो पेरिस पर कब्जा नहीं कर पाए। लगभग 70 साल पहले हुई एक संधि का बहाना लेकर ब्रिटेन भी फ्रांस की मदद के लिए उतर गया। इस संधि के अनुसार बेल्जियम की सुरक्षा का वादा ब्रिटेन ने उससे किया था। ब्रिटिश सेना के युद्ध में उतरने के कारण फ्रांसीसी सेना को मनोबल मिला और उसकी हार कुछ कम हो पाई।

प्रथम विश्व युद्ध: ऑटोमन साम्राज्य 

           पूर्वी मोर्चे पर जर्मनी को बड़ी सफलता मिली। रूस एक बड़ी पराजय की तरफ बढ़ रहा था। युद्ध के पहले महीने में ही 300,000 से अधिक रूसी सैनिक मारे जा चुके थे। दूसरी तरफ युद्ध शुरू होने के महज 1 महीने के अंदर ही ऑटोमन साम्राज्य ने भी रूसी साम्राज्य पर हमले शुरू कर दिया। पहले ही बताया जा चुका है कि हितों के टकराव के चलते कई सदियों से रूसी साम्राज्य और ऑटोमन साम्राज्य चिर प्रतिद्वंदी रहे थे। ऑटोमन सेनाओं ने अपने दूसरे बड़े अभियान के तहत स्वेज नहर पर हमला कर दिया और उस पर अधिकार करने की कोशिश की गई। हालांकि यह कोशिश नाकाम रही। अगर ऑटोमन साम्राज्य स्वेज नहर पर अधिकार कर पाता, तो शायद ब्रिटेन प्रथम विश्वयुद्ध में बहुत पहले ही हार चुका होता। स्वेज नहर ब्रिटेन को भारतीय उपमहाद्वीप और पूर्वी अफ्रीकी उपनिवेश देशो से जोड़ने का सबसे महत्वपूर्ण रास्ता था।

प्रथम विश्व युद्ध: खाई युद्ध 

           प्रथम विश्वयुद्ध की युद्ध नीति के सबसे बड़ा प्रतीक युद्ध खाईयाँ थी। यह खाइयां बहुत लंबी लंबी बनाई गई थी। मुख्यतया फ्रांस और जर्मनी के बीच थी। इन खाइयों में सैनिक रहते, खाते-पीते और यहीं से हमला करते थे। ये खाईयाँ इसलिए बनाई गई थी, ताकि आर्टरी गोलाबारी से बचा जा सके। मौसम की विपरीत दशाओं के कारण इन खाईयों में रहने वाले सैनिकों के लिए हालात बेहद अमानवीय और घातक होने लगे थे। कई हजारों सैनिक तो इन खाइयों में बीमारियों के कारण ही मर गए थे।
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प्रथम विश्व युद्ध: सोम का युद्ध 

            बैटल ऑफ सोम अथवा सोम का युद्ध, प्रथम विश्व युद्ध के कुछ बेहद ही दुखांत वृत्तांतों में से एक है। इस युद्ध में जो कि 1916 में लड़ा गया, महज 1 दिन में ही संयुक्त सेना के 80,000 जवान मारे गए। इन जवानों में मुख्यतः सभी ब्रिटेन और कनाडा के सैनिक थे। इस युद्ध में तकरीबन 300,000 से भी ज्यादा सैनिक मारे गए थे।

प्रथम विश्व युद्ध: वैश्विक आयाम 

            इस युद्ध को विश्व युद्ध कहने का सबसे प्रमुख कारण यह है, कि यह युद्ध यूरोप के छोटे से हिस्से से शुरू होकर पूरी दुनिया में संक्रमित हो चुका था। अफ्रीका में जर्मन उपनिवेशी देशों टोगों, तंजानिया और कैमरून में ब्रिटेन और फ्रांस की सेनाओं ने हमला कर दिया था। वही प्रशांत महासागर के कई द्वीपों और चीन के कई जर्मन व्यापारिक केंद्र ठिकानों पर जापान ने हमला शुरू कर दिया। काला सागर में रूस के सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाहों पर भी ऑटोमन साम्राज्य ने हमला कर दिया।

प्रथम विश्व युद्ध: गेलोपॉली संघर्ष 

            ऑटोमन साम्राज्य के प्रमुख शहर गेलीपॉली पर संयुक्त सेना की तरफ से लड़ते हुए मुख्यतः ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के सैनिकों ने, जिन्हें एंजेक आर्मी कहा जाता था, गेलीपॉली पर हमला किया। हालांकि इस हमले में उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली और बड़े पैमाने पर एंजेक सेना को हानि भी हुई। इसी एंजेक सेना के मृत सैनिकों की याद में आज भी ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में संयुक्त रुप से एंजेक दिवस मनाया जाता है।

प्रथम विश्व युद्ध: यूं-बॉट्स 

            इस युद्ध में दोनों पक्षों की तरफ से नौसेना ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। इस युद्ध में पहली बार जर्मनी ने पनडुब्बियां बनाई। इन पनडुब्बियों का नाम यु-बॉट्स था। प्रारंभ में इन यू-बॉट्स ने संयुक्त सेना के जंगी जहाजों को निशाना बनाना शुरू किया, लेकिन धीरे-धीरे इन्होने नागरिक जहाजों पर भी हमला करना शुरू कर दिया।

प्रथम विश्व युद्ध: अमेरीका 

            इन में से एक प्रमुख जहाज जो यूरोप से अमेरिका जा रहा था। जिसमें 12 सौ लोग सवार थे, को यू बॉट्स ने निशाना बनाया और सभी 1200 लोग अटलांटिक महासागर में डूब कर मर गए। यह एक बहुत बड़ा कारण था, जिस कारण अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन ने 1917 में इस युद्ध में शामिल होने का निर्णय लिया। प्रारंभ में अमेरिका ने यूरोप की इस लड़ाई से दूर रहने का फैसला किया था, लेकिन जर्मनी के इस पनडुब्बी हमले के बाद अमेरिका ने अपना रुख बदला।

प्रथम विश्व युद्ध और भारत 

           प्रथम विश्वयुद्ध में भारत की भूमिका भी काफी निर्णायक रही थी। भारत इस युद्ध के समय ब्रिटेन का उपनिवेश था और वह ब्रिटेन की तरफ से इस युद्ध में लड़ा था। ब्रिटेन के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस युद्ध में लगभग 13,00,000 भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया था। जो मुख्यतः मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक), मिस्त्र और सऊदी अरब जैसे उष्ण युद्ध स्थलों पर तैनात किए गए थे। इस युद्ध में भारतीय सैनिकों को अच्छी खासी सफलता भी मिली। इस युद्ध में लगभग 50,000 भारतीय सैनिक मारे गए।
          तृतीय भारत अफगान युद्ध और प्रथम विश्व युद्ध में मारे गए सैनिकों के सम्मान में इंडिया गेट का मेमोरियल बनाया गया है।

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