Wednesday 17 January 2018

प्रथम विश्व युद्ध: 2

By Anuj beniwal

world war 1

          विश्व युद्ध पूरे विश्व में व्यापक रूप से फैल चुका था। जर्मनी और ऑस्ट्रिया हंगरी सम्राज्य की सेनाएं दो तरफा युद्ध में घिरी हुई थी। पूर्वी मोर्चे पर उसका सामना रूसी सेनाओं से था, तो पश्चिमी छोर पर फ्रांस और ब्रिटेन की संयुक्त सेनाओं के साथ था। पश्चिमी छोर पर फ्रांस और ब्रिटेन के साथ हो रहा युद्ध अनिर्णायक सिद्ध हो रहा था।
खाई युद्ध के इस प्रारूप में दोनों ही पक्षों को कोई विशेष बढ़त नहीं मिल रही थी।

प्रथम विश्व युद्ध और अमेरिका 

             1917 तक अमेरिका तटस्थ था, लेकिन वह दोनों ही पक्षों को हथियार, जहाज, भोजन एवं अन्य सामग्रियों की आपूर्ति करता था। इसी कारण अमेरिका की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत हो गई थी। लेकिन 1917 में जर्मन पनडुब्बियों द्वारा अमेरिकी नागरिक जहाज लूसी टेनिया को डुबोने के बाद राष्ट्रपति विल्सन ने इस युद्ध में उतरने का फैसला कर लिया।
           अप्रैल 1917 में उन्होंने युद्ध में उतरने के लिए अमेरिकी कांग्रेस से प्रस्ताव पारित करवा लिया और अमेरिका युद्ध में उतर गया। अमेरिका ने युद्ध की शुरुआत पश्चिमी छोर से की। यहां हर दिन 10,000 अमेरिकी सैनिक फ्रांस में उतर रहे थे।
           अमेरिका के युद्ध में उतरने का एक और मुख्य कारण यह था, कि जर्मनी ने एक गुप्त पत्र मेक्सिको को लिखा था। जर्मनी जानता था कि एक न एक दिन अमेरिका इस युद्ध में जरूर उतरेगा और अगर ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती है, तो निश्चित रूप से अमेरिका ब्रिटेन का साथ देगा ना कि जर्मनी का।अतैव जर्मनी ने मेक्सिको को इस बात पर मनाने के प्रयास किए कि वह अमेरिका पर हमला कर दे। मेक्सिको इस बारे में कुछ सोच पाता, इससे पहले यह पत्र लीक हो गया और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को इस बात की भनक लग गई। इस बात ने भी आग में घी का काम किया और अमेरिका ने युद्ध में उतरने के अपने निश्चय को दृढ़ कर लिया था।

विल्सन बिंदु 

           अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन ने 1917 में एक प्रारूप तैयार किया। इसे विल्सन फॉर्मेट भी कहा जाता है। इसके अलावा इसे विल्सन चतुर्दश बिंदु भी कहा जाता है। इस प्रारूप में 14 बिंदुओं को रेखांकित किया गया। जिनमें राष्ट्र संघ का निर्माण और विश्व शांति की अपील जैसे 14 बिंदुओं को शामिल किया गया था। इन में उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खाते की बात भी की गई थी।

प्रथम विश्व युद्ध और रुसी क्रांति 

            कुछ ही समय हुआ था कि जर्मनी को एक बड़ा उत्साहपूर्ण समाचार मिला। फरवरी 1917 में रूसी साम्राज्य के सम्राट जार निकोलस द्वितीय की सत्ता का तख्तापलट हो गया। रूसी क्रांति में सरकार के पतन के कारण वहां नई अंतरिम सरकार बनी। यह सरकार ज्यादा दिन तक काम नहीं कर पाई और अक्टूबर 1917 में बोल्शेविक पार्टी की क्रांति ने इस नई सरकार का पुनः तख्तापलट कर दिया। बोल्शेविक पार्टी की इस क्रांति का नेतृत्व लेनिन ने किया था।

प्रथम विश्व युद्ध: ब्रेस्क-लेतोस्क संधि 

            लेनिन के रूस में राष्ट्राध्यक्ष बनते ही यह घोषणा कर दी कि ना वह खुद युद्ध चाहते हैं और ना रूस की जनता युद्ध चाहती है। अतः हम जर्मनी से एकतरफा युद्ध विराम की अपील करते हैं। इसके बाद रूस ने जर्मनी के साथ मार्च 1918 म़ें शांति समझोता कर लिया। इस समझोते को ब्रेस्क-लेतोस्क की संधि कहा जाता है। 
           इस समझौते पर हस्ताक्षर होते ही जर्मनी को अब दोनों मोर्चों पर युद्ध नहीं लड़ना था। जर्मनी ने इस बात से काफी उत्साह भी फैला की पूर्वी सीमा पर शांति समझौता होने के बाद पश्चिमी सीमा पर वह और अधिक ताकत के साथ युद्ध कर पाएंगे और जीत भी उनकी ही होनी। लेकिन अमेरिकी सेना के युद्ध में उतरने के कारण हालात उनके बस से बाहर के हो गए।

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति 

           संयुक्त सेनाओं ने केन्द्रीय शक्ति की सेनाओं पर चारों तरफ से हमले जारी रखें। दक्षिणी छोर, पूर्वी छोर और मध्य छोर से ऑस्ट्रिया हंगरी साम्राज्य की सेनाएं और ऑटोमन साम्राज्य की सेनाएं हार मान चुकी थी। युद्ध की समाप्ति पश्चिमी छोर पर हुई, जहां सबसे अंत में जर्मनी ने हार स्वीकार की।
           11 नवंबर 2018 की सुबह 11:00 बजे जर्मनी ने युद्ध विराम समझौते पर दस्तखत कर दिए। इस युद्ध की औपचारिक समाप्ति 6 महीने बाद हुई। जब जर्मनी ने वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर किया।
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प्रथम विश्व युद्ध: वर्साय की संधि 

          यह संधि वर्साय के महल में हुई थी। वर्साय के महल फ्रांस की राजधानी पेरिस के पास स्थित, फ्रांस के पुराने लुई राजाओं के महल थे।

युद्ध का कारण जर्मनी 

           इस संधि में सबसे बड़ी बात युद्ध का कारण जर्मनी को माना गया। यह बात अलग है कि सभी देशों ने एक दूसरे के ऊपर हमला किया। लेकिन विजेता शक्तियों ने अपने वर्चस्व को साबित करते हुए संपूर्ण अपराधों के लिए जर्मनी को जिम्मेदार माना। जर्मनी पर भारी युद्ध हर्जाना ठोक दिया गया। हर्जाने की रकम इतनी बड़ी थी कि इसकी अंतिम किस्त जर्मनी ने सन 2010 में जमा करवाई है।

यूरोप में नई सीमाएं 

           यूरोप में कई देशों की सीमाएं बदल गई। कई नए देशों का उदय हुआ। अफ्रीका और एशिया में विभिन्न उपनिवेशों की सीमाएं भी बदली गई। मध्य पूर्व एशिया में भी कई देशों का पतन हुआ और कई नई देश उभरे और सीमाओं में बदलाव हुआ।

साम्राज्यों का पतन 

           वर्साय की संधि को साम्राज्यों की कब्रगाह भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें चार प्रमुख बड़े पुराने साम्राज्यों का पतन हुआ।

ऑटोमन साम्राज्य 

           ऑटोमन साम्राज्य की प्रमुख खलीफा का साम्राज्य खत्म हुआ। खलीफा उस समय तक संपूर्ण विश्व के मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक नेता भी हुआ करते थे। युद्ध के बाद ब्रिटेन ने यह घोषणा कर दी कि वह ऑटोमन साम्राज्य को तोड़कर नई सीमाएं बनाएंगे और खलीफा के पद को समाप्त कर देंगे। इससे पूरे विश्व के मुसलमानों में आक्रोश की एक लहर दौड़ गई। दुनिया भर में अलग अलग जगहों पर कई आंदोलन चले। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े खिलाफत आंदोलन का उद्देश्य भी ब्रिटेन के इसी फैसले का विरोध करना था।

केंद्रीय यूरोप के साम्राज्य 

           जर्मनी के साम्राज्य का पतन हो गया और वहां बाईमर गणराज्य का उदय हुआ। ऑस्ट्रिया हंगरी साम्राज्य का पतन हुआ और वहां कई नए देश बने।

रुसी साम्राज्य 

          ऋचौथा सम्राज्य उस समय का सबसे बड़े साम्राज्य में से एक रूसी साम्राज्य था। हालांकि रूसी साम्राज्य का पतन रूस की क्रांति से हुआ था, लेकिन वह भी तात्कालिक कारण था। इसलिए इसे भी साथ में ही जोड़कर देखा जाता है।

नए देशों का उदय 

           इस संधि के बाद बहुत सारे नए देश बने। ऑस्ट्रिया हंगरी साम्राज्य से ऑस्ट्रिया, हंगरी, युगोस्लाविया और चेकोस्लोवाकिया जैसे देश बने। एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड और फिनलैंड रूसी और जर्मन साम्राज्य से बने नए देश थे।
           बोरफेयर समझौते के तहत मध्य पूर्व में एक नया देश फिलिस्तीन बनाया गया। ऑटोमन साम्राज्य को तोड़कर सीरिया, इराक और तुर्की जैसे नए देश बने। मध्य पूर्व में हुई नई सीमाओं के सीमांकन को साईकस्पीको समझौता कहा जाता है। इसमें ब्रिटेन, रूस और फ्रांस को कई नए भूभाग हथियाने का मौका मिला। इसी समझौते के तहत रूस को आर्मेनिया का क्षेत्र मिला।

प्रथम विश्व युद्ध: तकनीकी विकास 

प्रथम विश्व युद्ध: रेडियो 

           प्रथम विश्वयुद्ध में कई तकनीकी खासियतें भी रही थी। कुछ ही समय पहले मार्कोनी द्वारा किए गए रेडियो के आविष्कार का पहली बार व्यापक उपयोग प्रथम विश्व युद्ध में ही किया गया था। पहली बार प्रथम विश्व युद्ध में रेडियो को एक संप्रेषण साधन के रूप में वृहद पैमाने पर उपयोग में लाया गया।
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प्रथम विश्व युद्ध: सैन्य तकनिकी 

           इसके अलावा तकनीकी विकास में मशीन गन, टैंक आदि भी पहली बार प्रथम विश्व युद्ध में उपयोग किए गए। इसी विश्वयुद्ध में पहली बार जर्मनी ने पनडुब्बियों का आविष्कार कर उपयोग किया। जर्मन पनडुब्बियों ने प्रथम विश्वयुद्ध में एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार कुल मिलाकर 3700 से भी ज्यादा छोटे-मोटे जहाज डूबोए थे।
            प्रथम विश्वयुद्ध में पहली बार हवाई जहाजों का उपयोग किया गया। इस युद्ध में उपयोग में लाए गए हवाई जहाज आकार में बहुत छोटे थे और इनका उपयोग बम गिराने के लिए किया जाता था।

प्रथम विश्व युद्ध: मस्टर्ड गैस 

           मस्टर्ड गैस प्रथम विश्वयुद्ध में उपयोग में लाया गया एक खतरनाक घातक रासायनिक हथियार था। यह मस्टर्ड गैस का असर ही था कि जहां युद्ध में 1914 से 1918 तक कुल 170,00,000 लोग मारे गए थे, तो वही इन रासायनिक गैसों के उपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों के कारण 1918 से 1920 के दौरान दो करोड़ से भी ज्यादा लोग मारे गए।

प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम 

प्रथम विश्व युद्ध: जन स्वास्थ्य 

           प्रथम विश्वयुद्ध में हुए असर में से एक बड़ा असर जन स्वास्थ्य पर पड़ा। इतने लंबे समय तक चलने वाले इस व्यापक युद्ध ने पहले से ही लचर चिकित्सा व्यवस्था को बुरी तरह से नेस्तोनाबूत कर दिया।
           1918 में फैली एक महामारी जिसे स्पेनिश फ्लू कहा गया, के कारण पूरे यूरोप में लगभग 5 करोड लोग मारे गए। यह बीमारी एच1 एन1 वायरस से फैलती है, जो पिछले कुछ समय से दोबारा सक्रिय हुआ है और इसे स्वाइन फ्लू का कारण भी माना जाता है। इस महामारी का कारण युद्ध में उपयोग में लाई गई खाइयों को माना जाता है, जहां से जंग में मारे गए सैनिकों को उचित चिकित्सा व्यवस्था नहीं मिलने के कारण यह बीमारी एक संक्रामक रूप ले पाई।
           इन भारी जन हानियों के चलते यूरोप की जनसंख्या में व्यापक उतार-चढ़ाव देखने को मिले। 1921 में ब्रिटेन में हुई जनगणना के अनुसार वहां प्रति हजार व्यक्तियों पर 1300 से भी ज्यादा महिलाएं थी। यह लिंगानुपात हमें यह समझने में सहायता करता है कि युद्ध में मारे गए लोगों का आंकड़ा कितना बृहद हो सकता है।

प्रथम विश्व युद्ध: सामाजिक और सांस्कृतिक 

साहित्य 

            इस युद्ध में लड़ने वाले कई सैनिकों ने किताबें लिखी। इनमें सबसे प्रमुख नाम अर्नेस्ट हेमिंग्वे का आता है, जिन्हें बाद में साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिला। इसके अलावा जे. टॉल्किन भी एक प्रमुख नाम थे, जिन्होंने लॉर्ड ऑफ द रिंग्स नाम की पुस्तक लिखी।
           युद्ध के बाद साहित्य से युद्ध की गौरव और महिमामंडन लगभग शून्य हो गया। साहित्यकारों और लेखकों की मनोस्थिति में बदलाव आया और उन्हें अभी युद्ध एक गौरव की बजाय भारी जन विपलव का मंजर नजर आने लगा। अब इन बुद्धिजीवियों को यह समझ में आने लगा कि चाहे वह युद्ध में जीत भी जाए पर युद्ध लड़ने वाले हर एक पक्ष को व्यापक हानियां उठानी पड़ती है।

महिला  सशक्तिकरण 


           यूरोप और उत्तरी अमेरिका में युद्ध में लड़ रहे भारी तादाद में सैनिकों के कारण हुई नर जनसंख्या में व्यापक कमी से एक सामाजिक बदलाव भी आया। इन क्षेत्रों में अब महिलाएं फैक्ट्रियों में काम करने लगी थी, क्योंकि पुरुष मजदूरों की व्यापक कमी के कारण फैक्ट्रियों के मालिकों और फैक्टरी उत्पादों में गिरावट को देखते हुए महिलाओं को फैक्ट्रियों में काम करने का अधिकार दिया गया। युद्ध खत्म होने के बाद भी बहुत सारी महिलाओं ने फैक्ट्रियों में काम करना जारी रखा।

सफराजेट आंदोलन

            यही वह समय था जब यूरोप में महिलाओं ने अपने हक के लिए मताधिकार की मांग की। 1920 तक यूरोप और पश्चिमी दुनिया के किसी भी देश में महिलाओं को अदालत में गवाही देने और वोट डालने का अधिकार नहीं था। इसी महिला सशक्तिकरण के दौर से सफराजैट आंदोलन के नाम से एक आंदोलन खड़ा हुआ। जिसने महिला मताधिकार की मांग की और बाद में एक लंबे संघर्ष के बाद बीसवीं सदी की आधे में आते-आते पश्चिमी दुनिया में महिलाओं को वोट डालने का अधिकार मिलने लगा।

हिटलर का उदय 

           जर्मनी के बाईमर गणराज्य में नेशनल सोशलिस्ट पार्टी अथवा नात्सी पार्टी का उदय हुआ। हिटलर इसी नाजी पार्टी का कार्यकर्ता था।

प्रथम विश्व युद्ध: आर्थिक परिणाम 

           इस युद्ध का आर्थिक क्षेत्र में व्यापक प्रभाव पड़ा। युद्ध से पहले पूरी दुनिया में ब्रिटेन और फ्रांस सबसे बड़े आर्थिक शक्तियों में शुमार थे, लेकिन युद्ध खत्म होते-होते ब्रिटेन और फ्रांस दोनों ही अमेरिका के भारी कर्ज के बोझ तले दबे हुए थे। तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका इस युद्ध के कारण अपनी अर्थव्यवस्था को इतना मजबूत कर पाया कि वह भावी अर्थ शक्ति बनने की तरफ बढ़ रहा था। 1914 से लेकर 1929 तक जब तक कि अमेरिकी वित्तीय बाजार पूरी तरह से ध्वस्त ना हो गया हो, अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था बहुत ज्यादा मजबूत कर ली थी।

प्रथम विश्व युद्ध: राजनैतिक परिणाम 

यूरोप 

           प्रथम विश्व युद्ध के राजनीतिक असर पर अगर हम ध्यान दें तो यूरोप में फ्रांस और ब्रिटेन का प्रभुत्व बहुत ज्यादा बढ गया था। पूरी दुनिया में उपनिवेश की संख्या और भूभाग में भी वृद्धि होने के कारण दोनों देशों की स्थिति और ज्यादा मजबूत हो गई।

अमेरिका 

           राष्ट्र संघ और वर्साय की संधि जैसे मुद्दों पर अपनी अहम भूमिका निभाने के कारण अमेरिका का प्रभुत्व विश्व पटल पर बढ़ने लगा था। यह प्रथम विश्वयुद्ध ही था, जिसने अमेरिका को वर्तमान महाशक्ति बनने का मार्ग प्रशस्त किया था।

हिटलर 

            प्रथम विश्व युद्ध के राजनीतिक असर में से एक बाईमर गणराज्य में नात्जी पार्टी अथवा नेशनल सोशलिस्ट पार्टी का उदय होना और 1931 आते-आते चुनाव जीतकर जर्मन संसद में अपनी सत्ता स्थापित करना भी एक बड़ा असर माना जाता है। यह वही नाजी पार्टी है जिसका आगे चलकर जर्मन तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने नेतृत्व किया था।

तुर्की 

           ऑटोमन साम्राज्य के पतन के बाद तुर्की में एक क्रांति हुई। इस क्रांति का नेतृत्व मुस्तफा कमाल अता तुर्क ने किया। मुस्तफा कमाल अता तुर्क के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन के चलते ही तुर्की वर्तमान धर्म निरपेक्ष स्वरूप में उभर पाया।

राष्ट्र संघ 

           राष्ट्र संघ का गठन भी प्रथम विश्व युद्ध के राजनीतिक असर में से एक बड़ा ध्यातव्य बिंदु है। विश्व शांति की कामना के उद्देश्यों को लेकर राष्ट्र संघ का गठन किया गया था। विश्व की अनेकों देश इसके सदस्य बने। भारी उम्मीदों के बावजूद राष्ट्र संघ इन उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया और वह कुछ ही समय के अंतर में विश्व शांति बनाए रखने के अपने उद्देश्यों से भटक गया और द्वितीय विश्वयुद्ध को नहीं रोक सका। यही कारण था कि द्वितीय युद्ध आते-आते राष्ट्र संघ ने केवल कमजोर हुआ, बल्कि इसका अस्तित्व भी समाप्त हो गया।

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