Monday 16 October 2017

ऑपरेशन ब्लू स्टार

By Anuj beniwal
operation bluestar


              पंजाब के इतिहास के सबसे बुरे दौर की शुरुआत होती है इंदिरा गांधी की हार से। सन 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी की बुरी तरह हार और फिर पंजाब विधानसभा के चुनाव में भी इंदिरा गांधी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।

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ऑपरेशन ब्लू स्टार; पृष्ठभूमि 

           पंजाब में प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में अकाली दल की सरकार बनी तो फिर कांग्रेस ने एक ऐसे इंसान का सहारा लिया जिसने पंजाब ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान में उथल-पुथल मचा दी, नाम था जरनैल सिंह भिंडरावाले। जरनैल सिंह भिंडरावाले अमृतसर के प्रभावशाली दमदमी टकसाल का जत्थेदार था। राजनीति में जरनैल सिंह भिंडरावाले की दखल के पीछे थे ज्ञानी जैल सिंह और संजय गांधी। ज्ञानी जैल सिंह उस समय पंजाब के बड़े नेताओं में शामिल होते थे। उन्होंने संजय गांधी को विश्वास में लिया कि अकालियों को हराने के लिए जरनैल सिंह भिंडरावाला उचित मोहरा होगा। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर के मुताबिक जरनैल सिंह भिंडरावाला का चयन एक इंटरव्यू के बाद दिल्ली में हुआ था। इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी किताब "बिऑन्ड द लाइन एंड बायोग्राफी" में किया है, उन्होंने लिखा है कि "कांग्रेस कार्यसमिति के दो सदस्य ज्ञानी जैल सिंह और दरबारा सिंह जो बाद में मुख्यमंत्री भी बने, ने मिलकर 2 नामों का चयन किया और उन्हें संजय गांधी से मिलवाया गया। पहला व्यक्ति संजय गांधी को इतना नहीं जमा परंतु जरनैल सिंह भिंडरावाला का अक्खड़पन और तीखे तेवर संजय गांधी को बहुत पसंद आए। उन्हें लगा कि अकाली दल की सत्ता समाप्त करने में जरनैल सिंह सबसे उचित आदमी होगा। संजय गांधी के दोस्त और सांसद कमलनाथ ने मुझे बताया कि हम कभी-कभी उसे पैसे भी देते थे लेकिन हमें बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वह आतंकवाद की राह पर चल पड़ेगा।"

 ऑपरेशन ब्लू स्टार; शुरुआती कड़ीयांः

           जरनैल सिंह भिंडरावाला के तेवर शुरू से ही तीखे थे। 13 अप्रैल 1978 को निरंकारी सिक्खों और अमृतधारी सिक्खों के बीच हुए खूनी झड़प के बाद से ही वह चर्चा में आने लगा था। उस दिन तेरह अमृतधारी सिक्ख मारे गए। इसके बाद में निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह की हरियाणा में गिरफ्तारी भी हुई और बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। इस बात से कट्टर सिक्ख बहुत नाराज हुए। सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने बाद गुरु ग्रंथ साहिब को ही सिक्खों का गुरु घोषित कर दिया और उन्होंने अपने बाद किसी और जीवित गुरु की प्रथा समाप्त कर दी
           लेकिन निरंकारी सिक्ख जीवित गुरुओं में आस्था रखते हैं। सन 1978 में वैशाखी के दिन हुए खूनी झड़प के समय बाबा गुरबचन सिंह निरंकारीओ के गुरु थे। 24 अप्रैल 1980 को बाबा गुरबचन सिंह की हत्या कर दी गई। इस हत्या के आरोप में नामजद ज्यादातर लोगों का ताल्लुक जरनैल सिंह भिंडरावाले से था। इन घटनाओं के कुछ दिन बाद पत्रकार कुलदीप नैय्यर की मुलाकात जरनैल सिंह भिंडरावाले से हुई। उनके मुताबिक इस वार्त का कुछ अंश इस प्रकार था- कुलदीप: आपके आसपास इतने लोग हथियार लेकर क्यों घूमते रहते हैं? जरनैल सिंह: ये पुलिस वाले हथियार लेकर क्यों घूमते हैं? कुलदीप: ये तो सरकार के नुमांंईंदे है। भिंडरवाले ने कहा कोई मुझ से टक्कर ले कर तो देखे, पता चल जाएगा सरकार किसकी है। यह वार्ता चल ही रही थी कि कांग्रेस के बड़े नेता और देश के रक्षा और विदेश मंत्री रह चुके स्वर्ण सिंह कमरे में आये। स्वर्ण सिंह की गिनती तब देश के बड़े और कद्दावर नेताओं में होती थी लेकिन उन्होंने भी जरनैल सिंह भिंडरावाला के सामने कमरे के फर्श पर बैठना ही गनीमत समझा।

ऑपरेशन ब्लू स्टार और कांग्रेस की सियासत 


           दरअसल कांग्रेस ने जरनैल सिंह को बहुत सोच-समझकर आगे बढ़ाया था। BBC से जुड़े पत्रकार सतीश जैकब और मार्क टली ने मिलकर "अमृतसर: इंदिरा गांधीज लास्ट बैटल" नाम से एक किताब लिखी, जिसमें कहा गया संजय गांधी और जैल सिंह ने मिलकर भिंडरावाले के प्रचार प्रसार के लिए एक नई पार्टी बनवा दी। 1980 के चुनाव में भिंडरावाले ने पंजाब की 3 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के समर्थन में प्रचार भी किया था। इन सीटों में अमृतसर की सीट भी शामिल थी। कांग्रेस और भिंडरावाले के बीच में क्या संबंध थे, इस का संकेत खुद इंदिरा गांधी ने बीबीसी के पैनोरमा कार्यक्रम में दिए थे। जब उनसे पूछा गया था कि कांग्रेस और भिंडरावाले के बीच में क्या संबंध है तो इंदिरा गांधी ने कहा था कि मैं किसी भिंडरावाले को नहीं जानती हां शायद ऐसा याद आ रहा है कि वह हमारे चुनाव प्रचार में किसी उम्मीदवार से मिलने आए थे लेकिन मुझे उस उम्मीदवार का नाम याद नहीं है।
           BBC के इस कार्यक्रम में इंदिरा गांधी जिन चुनावों का जिक्र कर रही थी, वो चुनाव थे, 1980 के आम चुनाव। इन चुनावों में इंदिरा गांधी की वापसी हुई थी और उन्हें प्रचंड बहुमत मिला था। लोकसभा की कुल 529 सीटों में से इंदिरा गांधी को 351 सीटें मिली थी। ज्ञानी जैल सिंह को इंदिरा गांधी ने देश का गृहमंत्री बनाया। पंजाब विधानसभा चुनाव में भी अकाली दल को कांग्रेस ने पछाड़ा और ज्ञानी जैल सिंह के राजनीतिक विरोधी और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दरबारा सिंह को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया गया। इसी के साथ पंजाब में राजनीति का एक नया दौर शुरू हो गया।
Jarnail singh bhindrawale

ऑपरेशन ब्लू स्टार की प्रखर होती आहट 

ऑपरेशन ब्लू स्टार; जनगणना और भाषावादः

          सत्ता से बाहर होने के बाद अकाली दल अपने पुराने एजेंडा पर चला गया, जो श्री आनंदपुर साहिब रिज्योल्यूशन के नाम से जाने जाते हैं। इनमें था चंडीगढ़ को पंजाब को देना, नदियों को पानी ज्यादा पंजाब को देना इत्यादि। इस तरह की रिजोल्यूशन को लेकर अकाली दल ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। यह सब हो हि रहा था कि पूरे भारत की तरह पंजाब में भी जनगणना शुरू हो गई। जनगणना ने पंजाब की राजनीति को अलग तरह से ही गरमा दिया था। धर्म और भाषा के नाम पर राजनीति होने लगी।
           पंजाब में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले हिंदी दैनिक अखबार पंजाब केसरी ने हिंदी को लेकर मुहिम चला दी। उन दिनों पंजाब केसरी के एक संपादकीय में लिखा गया था "इन दिनों पंजाब में जनगणना चल रही है। इनमें लोगों से अपनी मातृभाषा पूछी जा रही है, हिंदू अपनी मातृभाषा हिंदी बताएं ना की पंजाबी।" इन बातों से कट्टर सिक्ख नाराज हुए। भिंडरावाले भी उस में से एक था। उस समय पंजाब केसरी के संपादक लाला जगत नारायण लगातार अपने लेखों और संपादकीय अभिव्यक्तियों से जरनैल सिंह भिंडरावाला पर प्रहार कर रहे थे और लगातार सरकार पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करने पर सरकार को लताड़ लगा रहे थे।

ऑपरेशन ब्लू स्टार; लाला जगतनारायण हत्याकांड 

            माहौल तनावपूर्ण होता जा रहा था। इसी बीच 9 सितंबर 1981 को एक बड़ी घटना हुई, लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई। हत्या का आरोप जरनैल सिंह भिंडरावाले पर लगा। हत्या के चार दिन बाद पंजाब सरकार ने जरनैल सिंह भिंडरावाला की गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया। भिंडरवाला उस समय हरियाणा के चंडोक कलाँँ में था। BBC पत्रकार सतीश जैकब ने इन घटनाओं घटनाओं की रिपोर्टिंग की थी, उनके मुताबिक हरियाणा में उन्हें गिरफ्तार करने के बजाय एक सरकारी गाड़ी से उन्हें वहां से ले जाया गया। हरियाणा और पंजाब सरकार दोनों भिंडरावाले की ऐसी छवि बना रहे थे कि उन्हें गिरफ्तार करना बहुत मुश्किल है और वह बहुत शक्तिशाली हो गए हैं।
           तमाम उठापटक के बाद जरनैल सिंह भिंडरावाला को लाला जगत नारायण की हत्या के 6 दिन बाद 15 सितंबर 1981 को अमृतसर के गुरुद्वारा श्री गुरु दर्शन प्रकाश से गिरफ्तार किया गया। इंदिरा गांधी की करीबी रही पुपुल जयकर के मुताबिक इंदिरा गांधी के इशारे और हस्तक्षेप से भिंडरावाले को रिहा कर दिया गया और इससे भी अजीबोगरीब बात यह हुई कि देश के गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने संसद में अपने वक्तव्य में भिंडरावाले की रिहाई की घोषणा कर दी और साथ में यह भी कह दिया कि उन्हें भिंडरावाले के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है।

ऑपरेशन ब्लू स्टार; भिंडरावाला गिरफ्तारी पर राजनीति 

           भिंडरावाले की गिरफ्तारी पर राजनीति हो ही रही थी, तो साथ में पंजाब को अलग खालिस्तान देश बनाने की मांग भी जोर पकड़ने लगी थी। पंजाब में खून खराबा अब बढ़ता जा रहा था। मामला संसद में भी उठा सदन में सीपीएम नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने सरकार से सवाल पूछा था कि "मैं सदन को यह बता देना चाहता हूं कि भिंडर वाले को कांग्रेस और अकाली दल दोनों का समर्थन मिल रहा है। अब इससे ज्यादा और क्या हो सकता है कि भिंडरवाला अपने हथियारबंद साथियों के साथ पिछले 10 दिन तक दिल्ली में घूमता रहा। आखिर उसे किसने बुलाया, वह कौन था जिसने उसके सारे कार्यक्रमों को प्रायोजित किया?" संसद और उसके बाहर उठ रहे सवालों का जवाब न तो कांग्रेस ने दिया और ना अकाली दल ने। उधर भिंडरावाले अपनी रिहाई के बाद दिल्ली से लेकर मुंबई तक बेखौफ घूम रहा था। बीबीसी पत्रकार सतीश जैकब के अनुसार उंहें अच्छे से याद है कि तब 10 दिन तक अपने हथियारबंद समर्थकों के साथ, जो कई ट्रकों में थे के साथ पूरी दिल्ली के चक्कर लगाता रहा था। खुद भिंडरावाला एक ओपन ट्रक में ऊपर बैठा रहता। अंत में वह एक सिक्ख नेता संतोक सिंह, जिनका देहांत हो गया था, कि शोक सभा में गया जिसमें राजीव गांधी भी शिरकत कर रहे थे।

 ऑपरेशन ब्लू स्टार; पूर्ववर्ती घटनाक्रम 

ऑपरेशन ब्लू स्टार और एशियाई खेलः

          पंजाब में भिंडरावाला और उसके समर्थक अलग देश खालिस्तान की मांग कर रहे थे। तभी दिल्ली में एशियाई खेलों का काम जोरों पर था। एशियाई खेलों का आयोजन 1982 के नवंबर और दिसंबर महीने में होना था। 30 साल बाद भारत में इतना बड़ा आयोजन होने वाला था, जिसमें 33 देशों के खिलाड़ी हिस्सा ले रहे थे। एशियाड को सफल बनाने का दारोमदार इंदिरा के बड़े बेटे राजीव गांधी के कंधों पर थ।  दिल्ली में सुरक्षा इंतजाम कड़े कर दिए गए थे। राजीव गांधी की छत्रछाया में एशियाड होने जा रहे थे, उधर भिंडरावाले ने एशियाई खेलों के दौरान विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दे दी थी।

नस्लीय भेदभाव और अपमान 

           गड़बड़ी की आशंका को देखते हुए दिल्ली हरियाणा सीमा सील कर दी गई। दिल्ली की तरफ आने वाले सिक्खों को शक की नजर से देखा जाने लगा। हरियाणा पुलिस के जवान तलाशी के दौरान बदसुलूकी भी करते पाए गए। अपमानित होने वालों में आम जनता के साथ साथ 1965 के भारत पाकिस्तान युद्धके हीरो रहे  एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह   भी शामिल थे। कुछ ऐसे ही अपमान से लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह को भी गुजरना पड़ा। लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बांग्लादेश में 90000 से भी ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों का सरेंडर करवाया था। इसमें कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं बख्शा गया। इतना ही नहीं शक के आधार पर डेढ़ हजार से भी ज्यादा सिक्खों को गिरफ्तार कर लिया गया। हरियाणा पुलिस की इस कार्यवाही से पंजाब में जबरदस्त गुस्सा था। इस गुस्से का फायदा भिंडर वाले ने उठाया उसने कहना शुरु किया कि सिक्खों को दूसरे दर्जे का नागरिक समझ कर उनके साथ गंदा व्यवहार किया जा रहा है। देश के लिए बलिदान देने वाले सेना के अफसरों को भी नहीं छोड़ा गया है।

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ऑपरेशन ब्लू स्टार; A S अटवाल हत्याकांडः

            संत हरचंद सिंह लोंगोवाल पंजाब में सक्रिय अकाली दल के अध्यक्ष थे। भिंडरावाले के बढ़ते प्रभाव ने लौंगोवाल को किनारे कर दिया था। इस बीच पंजाब में एक और बड़ी घटना हुई। इस बार निशाने पर खुद पुलिस थी। पंजाब पुलिस के डीआईजी अवतार सिंह अटवाल गोल्डन टेंपल स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने गए थे। मथ्था टेकने के बाद जब वो स्वर्ण मंदिर से बाहर निकल रहे थे तो  दिनदहाड़े कुछ हथियारबंद लोगों ने डीआईजी अटवाल पर गोलियां चला दी और ये हथियारबन्द लोग पुनः स्वर्ण मंदिर के अंदर चले गए।
             डीआईजी एएस अटवाल की मौके पर ही मृत्यु हो गई और घंटों तक उनकी लाश स्वर्ण मंदिर के बाहर पड़ी रही। दिनदहाड़े हुए इस हत्या के बाद घंटो तक डीआईजी अटवाल कि लाश स्वर्ण मंदिर के बाहर पड़ी रही लेकिन किसी भी पुलिसकर्मी की हिम्मत नहीं हुई कि वह जाकर अपने अधिकारी की लाश को कब्जे में ले ले। लगभग 3 घंटे बाद मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने फोन कर भिंडरावाला से मिन्नत की कि वह डीआईजी अटवाल की लाश उठवा लेने दे। बीबीसी पत्रकार सतीश जैकब के अनुसार जब उन्होंने दरबारा सिंह से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा आप यह सवाल मेरे वजाए गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह से क्यों नहीं पूछते हो जो दिल्ली में बैठे हैं, क्योंकि कानून व्यवस्था गृहमंत्री के क्षेत्राधिकार में आती है। इस घटना के बाद दरबारा सिंह ने इंदिरा गांधी से स्वर्ण मंदिर में पुलिस बेचने की सिफारिश की थी लेकिन इंदिरा गांधी ने गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह के मशविरे पर स्वर्ण मंदिर में पुलिस भेजने से मना कर दिया और इससे भिंडरावाले के हौसले और ज्यादा बुलंद हो गए।

ऑपरेशन ब्लू स्टार और दिल्ली की सियासत 

           पंजाब में हालात लगातार विस्फोटक होते जा रहे थे। इसे देखते हुए इंदिरा गांधी ने एक बहुत बड़ा राजनीतिक फैसला किया। यह फैसला था ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति बनाने का। ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति  पद पर शपथ लेने के एक महीने बाद ही संत हरचंद सिंह लोंगोवाल की अगुवाई में अकाली दल ने गिरफ्तारी और मोर्चा देने का अभियान छेड़ दिया। 2 महीने में 30000 से भी ज्यादा गिरफ्तारियां हुई। यह एक अहिंसक आंदोलन था जिसका मकसद श्री आनंदपुर साहिब रिजोल्यूशन को लागू करना था। चारों तरफ गिरफ्तारियों का आलम चरम पर था। हालात तनावपूर्ण, और ज्यादा तनावपूर्ण होते चले गए।

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ऑपरेशन ब्लू स्टार और पंजाब की राजनीति 

 दरबारा सिंह सरकार की बर्खास्तगीः

           इसी बीच 5 अक्टूबर 1983 को उग्रवादियों ने बड़ी घटना को अंजाम दिया। पंजाब के कपूरथला से जालंधर जा रही एक बस को देर रात आंतकवादियों ने रास्ते में रुकवाया। बस में से चुन चुन कर 6 हिंदुओं को बस से नीचे उतार कर गोली मार दी। इस घटना के अगले ही दिन यानी 6 अक्टूबर 1983 को इंदिरा गांधी ने पंजाब की दरबारा सिंह सरकार को हटा दिया और पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इसे इंदिरा गांधी की भारी भूल कहा जाता है, इससे भिंडरावाला के खिलाफ सख्त लाइन देने वाले एक बड़े नेता से केंद्र का सीधा संपर्क टूट गया। दरबारा सिंह सरकार को हटाने के बाद भी हालात बदले नहीं। एक महीने बाद ही अमृतसर से चंडीगढ़ जा रही एक और बस पर हमला हुआ, हिंदुओं की पहचान की गई और परिवार वालों के बीच गोली मार दी गई। पंजाब में रात में बसों के चलने पर रोक लगा दी गई। हत्या और लूटपाट की घटनाएं उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही थी।



ऑपरेशन ब्लू स्टार की पुख्ता होती जमीन 

अकाल तख्त पर कब्जाः

           एक तरफ दिल्ली में असमंजस था तो दूसरी तरफ भिंडरावाले ने एक और बड़ा कदम उठाया। 15 दिसंबर 1983 को उसने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में स्थित अकाल तख्त पर अपने हथियारबंद साथियों के साथ मिलकर कब्जा कर लिया। अकाल तख्त का मतलब एक ऐसा सिंहासन था जो अनंत काल के लिए बना हुआ है। इसे 16वीं शताब्दी में बनाया गया था। इसे दिल्ली में स्थित मुगल दरबार के सिंहासन से 1 फुट ऊंचा बनाया गया था ताकि बताया जा सके कि ईश्वर का स्थान बादशाहों से ऊपर होता है। यहीं से सिक्ख धर्म के हुक्मनामें जारी होते रहे हैं। अकाल तख्त का धार्मिक महत्व तो है ही, राजनीतिक महत्व भी है। भिंडरावाले के अकाल तख्त पर कब्जा करने का विरोध स्वर्ण मंदिर के मुख्य ग्रन्थी संत कृपाल सिंह ने किया लेकिन भिंडरवाला ने किसी के भी विरोध की परवाह नहीं की। अकाल तख्त से ही भिंडरावाले ने इंदिरा गांधी को धमकी दी और दार्शनिक अंदाज में कहा की हम तो माचिस की तीलियों की तरह हैं। लकड़ी की बनी है और ठंडी है, लेकिन अगर आप इसे जलाओगे तो लफडटें निकलेंगी।

ऑपरेशन ब्लू स्टार; समझोत की कोशिशः

           इंदिरा गांधी के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही थी। 1984 का फरवरी महीना था, 10 महीने बाद ही देश में और पंजाब में चुनाव होने वाले थे। इंदिरा गांधी के लिए समझौता करना एक राजनीतिक मजबूरी भी बनती जा रही थी। उधर अकाली भी समझ गए थे कि भिंडरावाले का कद बहुत बढ़ गया है और वह उनके वजूद को ही कड़ी चुनौती दे सकता है। तब नरसिम्हा राव विदेश मंत्री हुआ करते थे, उन्हें अकालियों से बात कर समझौते की कमान सौंपी गई। नरसिम्हा राव ने अकालीयों से बात कर एक फार्मूला निकाला कि चंडीगढ़ शहर पंजाब को दिया जाएगा बदले में हरियाणा को अबोहर शहर दिया जाएगा और सरकार से इस फार्मूले का सुझाव देने के लिए एक आयोग का गठन किया जाएगा। लेकिन एक और शर्त थी कि यह फार्मूला पहले संत हरचंद सिंह लोंगोवाल और जरनैल सिंह भिंडरावाले को भी मंजूर होना चाहिए।
           संत हरचंद सिंह लोंगोवाल और भिंडरावाले को राजी करने का काम गुरचरण सिंह तोहडा और प्रकाश सिंह बादल का था। गुरुचरण सिंह तोहरा तब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष थे। सिक्ख राजनीति के सबसे मजबूत नेताओं में उनकी गिनती होती थी। बादल और तोहडा इस प्रस्ताव को लेकर स्वर्ण मंदिर गए, वहां उन्हें संत हरचंद सिंह लोंगोवाल और भिंडरावाले से मिलना था। संत हरचंद सिंह लोंगोवाल खुद भिंडरावाले से त्रस्त थे वह तैयार हो गए। अब भिंडरावाले को तैयार करना बाकी था। तोहरा ने बताया कि सरकार ज्यादातर मांगें मान चुकी है। भिंडरावाले को यह भी बताया गया कि यह कमीशन बनाया जाएगा जो सरकार को इन सुझावों की सिफारिश करेगा। बातचीत और समझौते की सभी कोशिशें बेकार हुई। भिंडरावाले किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं था। भिंडरावाले के अड़ियल रवैया ने रास्ते बंद कर दिए थे। इस घटना के 1 हफ्ते बाद ही लोंगोवाल ने घोषणा कर दी कि 3 जून के बाद से गेहूं पंजाब के बाहर ले जाने नहीं दिया जाएगा।

ऑपरेशन ब्लू स्टार; राष्ट्रव्यापी फैलती आग 

           पंजाब में हिंदू और सिक्खों के बीच में बढ़ते तनाव का असर देश के दूसरे राज्यों में भी होने लगा था। 19 फरवरी 1984 को हरियाणा के पानीपत और जगाधरी में 9 सिखों को मार दिया गया और 3 गुरुद्वारे भी तोड़ दिए गए। BBC पत्रकार सतीश जैकब ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि उस समय केंद्र सरकार ने माना था कि बड़े पैमाने पर हिंदुओं की हत्या होने की रिपोर्ट अभी उन्हें खुफिया तौर से मिलने लगी थी। भिंडरावाले चाहता था कि नरसंहार के बाद हिंदू पंजाब छोड़ने के लिए मजबूर हो जाए और देश की अलग अलग भागों में बसे सिक्ख पंजाब में शरण लेने चले आए। सीधे सीधे दिल्ली सरकार को चुनौती थी। अब इंदिरा गांधी को किसी फैसले पर पहुंचना ही था। 1 जून 1984 को पंजाब को सेना के हवाले कर दिया गया। सेना क्या कार्यवाही करेगी इसको लेकर चिंता थी। आखिरकार 2 जून 1984 की रात इंदिरा गांधी दूरदर्शन पर आई एक आखरी अपील के साथ। वह अपील थी "देशवासियों पंजाब में निर्दोष सिक्ख और हिंदू मारे जा रहे हैं अराजकता फैली हुई है, लूटपाट हो रही है। धार्मिक स्थल अपराधियों के शरणगाह बन गए हैं। अगर अब भी किसी मुद्दे पर कोई गलतफहमी हो तो आइए हम बातचीत की मेज पर इसे हल करने की कोशिश करेंगे।"

ऑपरेशन ब्लूस्टारः

ऑपरेशन ब्लू स्टार पर निर्णायक फैसला 

           इंदिरा गांधी ने आखिरकार स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने का फैसला कर लिया। कोड वर्ड रखा गया ऑपरेशन ब्लू स्टार एक तरफ इंदिरा गांधी ने बातचीत का न्योता दिया और दूसरी तरफ अमृतसर की सारी फोन लाइन कट करवा दी गई। पंजाब के नेता चाहे वह चरमपंथी हो या नरमपंथी वो बातचीत नहीं कर सकते थे। बहरहाल इंदिरा गांधी की अपील का असर होना नहीं था, हुआ भी नहीं। जब इंदिरा गांधी देश को संबोधित कर रही थी उसी दौरान मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार की अगुवाई में सेना की नवीं डिवीजन स्वर्ण मंदिर की तरफ बढ़ रही थी। 3 जून को अमृतसर से पत्रकारों को बाहर कर दिया गया।
           पाकिस्तान से लगती सीमा को सील कर दिया गया। भिंडरावाले तब अकालतख्त में ही था। जब दिल्ली में इंदिरा गांधी बड़े फैसले ले रही थी तो भिंडरावाले स्वर्ण मंदिर में पत्रकारों से बात कर रहा था। वह तब भी समझ रहा था कि सेना कभी स्वर्ण मंदिर के अंदर दाखिल नहीं होगी और अगर हुई तो जबरदस्त लड़ाई होगी। भिंडरावाला के पत्रकारों को दिए गए जवाबों से दो बातें बिल्कुल साफ थी। सेना के साथ मुकाबला करने को वह तैयार था यानी बहुत खून खराबा होने वाला था। उधर घेराबंदी के बाद सेना ने अंदर रह रहे लोगों को बाहर आने की। यह अपील बार-बार की गई। 5 जून शाम 7:00 बजे तक सिर्फ 129 लोग ही बाहर आए, उन्होंने बताया कि भिंडरावाले के लोग बाहर आने से रोक रहे हैं।
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ऑपरेशन ब्लू स्टार आरम्भ 

          5 जून शाम 7:00 बजे सेना की कार्रवाई शुरु हो गई। रात भर दोनों तरफ से गोलीबारी होती रही। 6 जून को सुबह 5:20 पर तय किया गया कि अकाल तख्त में छुपे आंतकवादियों को बाहर निकालने के लिए टैंक लगाने होंगे। ऑपरेशन के दौरान बहुमूल्य किताबों और सामग्रियों की लाइब्रेरी में आग लग गई। आतंकवादियों और सेना के बीच हुई फायरिंग में चली कई गोलियां हरमंदर साहब की ओर भी गई। अकाल तख्त को भी भारी नुकसान हुआ। हालांकि बाद में भारत सरकार ने अकाल तख्त दोबारा बनवाने की पेशकश की लेकिन सिक्ख समुदाय ने सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उन्होंने खुद ही अकाल तख्त को दोबारा बनवाया। बहरहाल स्वर्ण मंदिर में 6 जून को सुबह से शाम तक गोलीबारी होती रही। आखिरकार देर रात भिंडरावाले की लाश सेना को मिली और 7 जून की सुबह ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म हो गया।
           अगले 3 दिनों तक छुपे हुए आंतकवादियों की तलाशी का अभियान चलता रहा। इसी बीच 8 जून 1984 को राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह ने यहां का दौरा किया। जब वे मंदिर के अंदर ही थे तभी उन्हें निशाना बनाकर आंतकवादियों ने गोली भी चलाई जो उनकी सुरक्षा में लगे एक अधिकारी के कंधे पर लगी। लेफ्टिनेंट जनरल बरार की अगुवाई में ऑपरेशन ब्लूस्टार में शामिल कुल 83 सैनिक मारे गए जिसमें 4 ऑफिसर शामिल थे। इसके अलावा 248 घायल हुए। मरने वाले आतंकवादियों और अन्य की संख्या 492 रही, हालांकि आज भी इस बात को लेकर बहस है कि आतंकवादियों के अलावा मरने वाले की संख्या काफी ज्यादा थी। जो या तो सेना और आतंकवादियों के बीच हुई झड़प या किन्हीं और कारणों से उनकी जान गई। परिसर से भारी मात्रा में हथियार बरामद किए गए, इसमें एंटी टैंक रॉकेट लांचर भी थे।

ऑपरेशन ब्लू स्टार; किताबों में 

           यह एक बहुत बड़ा फैसला था जो इंदिरा गांधी ने लिया। इसके बारे में देश के राष्ट्रपति और तीनों सेनाओं की सुप्रीम कमांडर ज्ञानी जैल सिंह को भी इंदिरा गांधी ने भनक तक नहीं लगने दी। ज्ञानी जेल सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि "उन्होंने इंदिरा गांधी को बार-बार यही सलाह दी थी कि वह पंजाब के टेररिज्म के मामले में और खासकर भिंडरावाले के मामले में कोई भड़काऊ कदम न उठाएं" और अपनी किताब में ज्ञानी जैल सिंह आगे लिखते हैं कि "इंदिरा गांधी को उन पर विश्वास ही नहीं था"। अब सवाल यह भी उठता है कि उन ज्ञानी जैल सिंह पर से इंदिरा गांधी का विश्वास कैसे उठ गया जिन्होंने खुद ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति बनवाया था? इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे PC एलेग्जेंडर ने अपनी किताब माई इयर्स विद इंदिरा गांधी मैं लिखा है कि "इंदिरा गांधी पंजाब समस्या से जुड़ी हर मुद्दे की ओर यहां तक की गुप्त समझौतों तक की जानकारी ज्ञानी जैल सिंह को देती थी, लेकिन फिर इंदिरा गांधी को यह सूचना मिली कि राष्ट्रपति भवन से यह बातें कुछ लोग लीक कर देते हैं।"

ऑपरेशन ब्लू स्टार; दिल्ली मे हलचल और इंदिरा गान्धीः

           ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म होने के बाद एक बड़ा फैसला इंदिरा गांधी के सुरक्षा अधिकारियों ने लिया। इंदिरा गांधी की सुरक्षा में लगे सभी सिक्ख गार्डों को हटाने का फैसला किया गया। जिसे प्रधानमंत्री के पास भेजा गया। इंदिरा गांधी की करीबी रही पुपुल जयकर के मुताबिक इंदिरा गांधी ने सिक्ख गार्डों को हटाने से मना कर दिया। तो बीच का रास्ता निकाला गया। उनकी सुरक्षा में लगे सभी सिक्ख गार्डों के साथ एक गैर सिक्ख गार्ड लगाने का फैसला किया गया। हालांकि यह फैसले पर कभी अमल नहीं किया गया।
           इन्हीं दिनों पुपुल जयकर ने इंदिरा गांधी को आत्मकथा लिखने का सुझाव दिया और इंदिरा गांधी उसे तत्काल मान गई। पुपुल जयकर के मुताबिक आत्मकथा लिखने के दौरान इंदिरा गांधी अब काफी इमोशनल हो जाया करती थी। पुपुल जयकर के अनुसार '1 दिन इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा कि क्या वह नवंबर के महीने में कश्मीर घाटी गई है? तो पुपुल ने जवाब दिया कि हां वहां गांधरबल जाकर चेनार के पेड़ों को देखना चाहिए। प्रत्युत्तर में इंदिरा गांधी ने पुपुल से कहा पता है पुपुल मैं चेनार के पेडों के नीचे बैठना चाहती हूं, बदलते हुए रंगों को महसूस करना चाहती हूं, चेनार की पत्तियों को पकते हुए देखना चाहती हूं और उन्हें पेड़ से अलग होते हुए देखना चाहती हूं। थोड़ा रुककर इंदिरा गांधी फिर बोली तुम्हें याद है वह ब्रिज विहार का चिनार का पेड़़, मैंने सुना है उस पेड़ की मौत हो गई है। जब पुपुल ने हामी में सर हिलाया तो इंदिरा गांधी फिर बोली मैंने अपने बेटों से कहा है कि जब मैं मर जाऊं तो मेरी राख को हिमालय पर बिखेर देना। पुपुल ने उनसे पूछा कि आप मौत की बातें क्यों करती है? तो इंदिरा ने बस इतना कहा क्यों क्या मौत एक सच्चाई नहीं है?
           अगले ही दिन इंदिरा गांधी राहुल और प्रियंका को लेकर श्रीनगर चली गई। वहां से लौटी तो उड़ीसा के चुनावी दौरे पर उन्हें जाना पड़ा, वहीं 30 अक्टूबर को इंदिरा गांधी ने अपना ऐतिहासिक भाषण दिया। उस भाषण के अंश कुछ इस तरह थे "जब तक मुझमें जान है तब तक सेवा ही में जाएगी और जब मेरी जान जाएगी तो मैं कह सकती हूं की एक-एक खून का कतरा जितना मेरा है, वह एक-एक खून का कतरा एक भारत को जीवित करेगा, भारत को मजबूती देगा।" 3 महीने बाद ही देश में लोकसभा चुनाव होने वाले थे और देश की आयरन लेडी मौत की बात कर रही थी। क्या आसपास के हालात देखकर इंदिरा गांधी को यह एहसास हो गया था कि उनकी मौत एक बहुत ही दर्द भरे हादसे के साथ होने वाली है? क्या इंदिरा गांधी को अपनी मौत का एहसास हो चुका था? उनके भाषणों से, उनकी बातों से, उनके खतों से ऐसा ही कुछ लगता है।
           31 अक्टूबर की सुबह, हुआ भी कुछ ऐसा ही। उनके अपने ही गार्डों ने उन्हें गोलियों से भून दिया। इस घटना की जानकारी देश को सबसे पहले दूरदर्शन पर दी गई। जिसमें कहा गया कि "आज सुबह प्रधानमंत्री निवास पर प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या करने की कोशिश की गई। उन्हें तत्काल ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस ले जाया गया जहां उनका इलाज चल रहा है।"

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