
आखिर कौन है रोहिंग्या ओर यह क्रन्दन क्युं है?
कौन है रोहिंग्या
जब हर तरफ यह जिक्र आम हुआ कि उन पर हो रहे जुल्म और जिल्लत सारी हदें पार कर चुकी है, तो इन परिस्थितियों मे यह नितांत आवश्यक हो गया है कि इसकी वास्तविक पृष्ठभूमि को समझा जाऐ ।
रोहिंग्या मुसलमान मूलतः बांग्लादेशी है । जो अशांति काल में भागकर बांग्लादेश से बर्मा में घुसकर अवैध शरणार्थियों के रूप में बर्मा में बस गए, जिससे कमजोर बर्मिस अर्थव्यवस्था एवं मूल बर्मा बौद्ध समाज इन मुसलमानों को स्वीकार नहीं कर पाया और कमजोर बर्मीस अर्थव्यवस्था इन अवैध करोड़ों शरणार्थियों द्वारा उत्पन्न अतिरिक्त अर्थ भार का वह नहीं कर पाई । जिसका भुगतान मूल बर्मीस समाज को करना पड़ा ।
इस कारण मूल समाज एवं शरणार्थी समाज के बीच में रोष की भावना उत्पन्न होने लगी । जिससे फलीभूत होकर मूल समाज शरणार्थी समाज से घृणा करने लगा । उन्हें रोजगारों में कमी महसूस होने लगी और धीरे-धीरे रोहिंग्या मुसलमान बेरोजगारी और भुखमरी की तरफ बढ़ने लगे । अपनी भूखमरी और बेरोजगारी से छुटकारा पाने के लिए रोहिंग्या मुसलमान अपराध करने लगे । इनकी अपराध करके अपनी आजीविका कर गुजर-बसर करने के कारण मूल बौद्ध समाज और ज्यादा इनसे दूर होने लगा ।
अब इस नवागत अपराधी समाज एवं मूल बौद्ध समाज के बीच में दूरियां बहुत बढ़ गई थी । रोहिंग्या मुसलमानों को रोजगार के लगभग सारे साधन बंद हो चुके थे । अब आजीविका एवं जीने की अंतिम उम्मीद में अपराध ही विकल्प नजर आने लगा । ऐसी परिस्थितियों में रोहिंग्या मुसलमान अपराध में और आगे बढ़ गए । मौजूदा समस्या का बीजारोपण आज से 5 साल पहले एक बौद्ध महिला के बलात्कार और हत्या के बाद उपजे विवाद से माना जाता है ।
तत्कालीन बर्मा सरकार ने बांग्लादेश सरकार से अपील की थी कि वह रोहिंग्या मुसलमानों को वापस बांग्लादेश बुलाए । जिसे बांग्लादेश सरकार ने उस वक्त मना कर दिया और विश्व समुदाय ने रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकारों का ढींढोरा पीटते हुए उन्हें बर्मा में रहने एवं रोजगार के साधनों की खोज करने के लिए प्रेरित करने हेतु वर्मा सरकार पर दबाव बनाया ।
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अब सवाल यह उठता है कि क्यों बांग्लादेश सरकार अपने मूल नागरिकों को वापस अपने देश लाने से हिचकिचा रही है और जो विश्व समुदाय एक कमजोर बर्मीस अर्थव्यवस्था पर यह दबाव बना सही है कि वह करोड़ों अवैध शरणार्थियों को अपने देश में रखने पर मजबूर हो रही है । क्या मूल अधिकार सिर्फ रोहिंग्या मुसलमानों के लिए आरक्षित कर देना ठीक होगा जहां मौजूदा हालात रोहिंग्या मुसलमानों के साथ साथ मूल समाज के मानवाधिकारों का भी दमन आर्थिक रुप से कर रहे है ।
इस बात से मना करना सर्वथा गलत होगा कि रोहिंग्या मुसलमान आज जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं । लेकिन जब हम मौजूदा विश्व में देखते हैं तो बड़ी बड़ी आर्थिक महाशक्ति अभी शरणार्थियों के विषय पर अपने हाथ पीछे खींच रही है । तो एक कमजोर अर्थव्यवस्था को इस तरह से दबाया जाना और उसे मजबूर किया जाना कहां तक सही है और उस देश के मूल निवासियों का यह आर्थिक रुप से दमन नहीं होगा तो और क्या होगा ? क्यों विश्व जगत बर्मा और बर्मीस सरकार को इस बात के लिए मजबूर कर रही है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों के विषय पर नतमस्तक होकर समर्पण करें और अपने मूल निवासियों के हितों की चिंता छोड़ दे ?
प्रश्न यह भी स्वभाविक एवं जरुरी हो जाता है यहां पर कि क्यों अमेरिका जैसे कथित मानवाधिकार संरक्षक देश जहां एक और आंतकवादी देशों को आर्थिक अनुदान एवं सहायता उपलब्ध करवाते हैं क्यों न वह आगे आकर वर्मा जैसे कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों को रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकार एवं मूल निवासियों के हितों के संरक्षण, दोनों को समझकर उनके विकास की दृष्टि से बर्मा सरकार को प्रोत्साहन देने हेतु आर्थिक मदद करें ? लेकिन यह विचार नितांत ही अस्वभाविक लगता है क्योंकि रोहिंग्या मुसलमानों का विषय मानवाधिकारों से जुड़ा होने से भी कहीं ज्यादा वैश्विक कूटनीति की तरफ इशारा करता है जो एक कुंठित मानवीय मानसिकता की परिचायक है ।
Nice blog
ReplyDeleteKnowledgeable
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