Wednesday, 11 October 2017

लोकनायक; जयप्रकाश नारायण

By Anuj beniwal

लोकनायक जयप्रकाश नारायण


बिहार के सारण जिले का सिताबदियारा गांव, इतिहास का चमकता दर्पण सिताबदियारा में इठला रहा था। इस ऐतिहासिक आभा से एक कर्मयोगी को जन्म लेना था।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

           11 अक्टूबर 1914 को जयप्रकाश नारायण का जन्म हुआ, जो आगे चलकर जेपी के नाम से मशहूर हुए। जयप्रकाश नारायण का जन्म अत्यंत सामान्य परिवार में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद वो बिहार के विद्यापीठ में शामिल हुए। यह किस्मत का तकाजा था कि उच्च शिक्षा दिलाने की हैसियत उनके परिवार में नहीं थी। यह अभाव ताकत भी दे रहा था, अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए उन्होंने आमदनी के लिए होटल में वेटर का काम किया। उच्च शिक्षा के लिए वह अमेरिका चले गए, साल 1922 से 1929 तक वो अमेरिका के कैलिफोर्नीया विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विषय का अध्ययन किया और स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। फीस चुकाने के लिए वह अमेरिका में बागों से फूल तोड़ने और होटल में वेटर का काम भी किया करते थे। इस कारण वो दिन में काम करते और रात को पढ़ाई करते जिस कारण वो बहुत बार विश्वविद्यालय से अनुपस्थित भी रहे, लेकिन बावजूद इसके उन्होंने विश्वविद्यालय टॉप किया। साल 1929 में उनकी माताजी की तबीयत बहुत बिगड़ने से वे पीएचडी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर वापस भारत आ गए।

राष्ट्रीय आन्दोलन मे भूमिका:

           1929 में जब जयप्रकाश नारायण भारत लौटे तो उस समय भारतीय आजादी का संघर्ष भी अपने परवान पर था। JP इस संघर्ष में कूद पड़े। यही जेपी की मुलाकात महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू से हुई। भारत को आजाद देखने की उनकी कसक बचपन से थी जब वो पटना में साइंस से इंटर की पढ़ाई कर रहे थे, तो उन्होंने एक दिन विद्यालय में मौलाना आजाद के भाषण उनके बाल मन पर गहरी छाप छोड़ी थी, जिसका संदेश यह था कि "यह वतन उन नौजवानों पर फक्र करेगा, जो उसे गुलामी की बेड़ियों से आजाद करेंगे।" जब जयप्रकाश अमेरिका से लौटे तो उस वक्त भारत में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन चल रहा था। जयप्रकाश नारायण भी अंग्रेजों की हुकूमत के खिलाफ इस आंदोलन में शामिल हो गए। आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण उन्हें 1932 में गिरफ्तार कर लिया गया और 1 साल की कैद की सजा देकर उन्हें नासिक जेल भेज दिया गया। JP जब अमेरिका में थे तो वहां के मजदूर आंदोलनों के संपर्क में आए और मार्क्सवादी विचारधारा के महासागर में उन्हें शांति और सात्विकता का एहसास हुआ और जेपी भारत लौटते-लौटते एक पक्के मार्क्सवादी क्रांतिकारी बन चुके थे। नासिक जेल में उनकी मुलाकात कई कांग्रेसी नेताओं से हुई और जेल में एक पार्टी की नींव पड़ी जो कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नाम से जानी जाती थी, जो उस समय भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष का नेतृत्व करने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक वामपंथी संगठन था जो समाजवाद में विश्वास रखता था। जब 1934 में कांग्रेस ने चुनाव में भाग लेने का फैसला किया तो जेपी और सोशलिस्ट पार्टी ने इसका विरोध किया। द्वितीय विश्वयुद्ध में ग्रेट ब्रिटेन की तरफ से भारतीय सैनिकों को ले जाकर लड़ाने की नीति का जयप्रकाश नारायण ने पुरजोर और खुलकर विरोध किया। 1939 में जयप्रकाश को फिर से गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में भेज दिया गया परंतु मौका पाकर जयप्रकाश अपने 6 सहयोगियों के साथ जेल की सीमाएं लांघ कर भागने में सफल रहे। 1945 में जेपी और राम मनोहर लोहिया दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन कुछ ही समयांतराल में दोनों फिर से फरार हो गए। जेपी रावलपिंडी पहुंचे और अपना नाम बदल लिया लेकिन एक दिन रेल में सफर करते समय उन्हें वापस गिरफ्तार कर लिया गया और लाहौर जेल भेज दिया गया। 1945 में उन्हें लाहौर से आगरा सेंट्रल जेल में शिफ्ट कर दिया गया।

आजादी के बाद:

लोकनायक जयप्रकाश नारायण

           15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया। आजादी के बाद 1948 में जयप्रकाश ने आचार्य नरेंद्र देव के साथ मिलकर कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया। बाद में गांधीवादी दल के साथ मिलकर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। बंटवारे की खिलाफत करने वाले कुछेक नेताओं में से महात्मा गांधी के पीछे खड़े उन लोगों में प्रथम पंक्ति में जयप्रकाश नारायण का नाम अजीत पटवर्धन, खान अब्दुल गफ्फार खान और राम मनोहर लोहिया के साथ अग्रिम पंक्ति में आता है। आजादी के बाद भारत में पहली बार हुए आम चुनावों के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार सत्ता में आई। पंडित नेहरू चाहते थे कि जयप्रकाश नारायण उनके मंत्रिमंडल में आए लेकिन यह JP की बेमिसाल राजनीतिक जीवन का ही एक उदाहरण था की वो सत्ता की चकाचौंध से दूर रहना चाहते थे। उन्होंने नेहरू को यह कह कर मना कर दिया कि आपके उसूल अलग है और मेरे उसूल अलग है। पंडित नेहरु की लाख कोशिशों के बाद भी JP मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुऐ। वो सत्ता में पारदर्शिता और जनता के प्रति सरकारों की जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहते थे।
           JP विनोबा भावे से काफी प्रभावित थे, इसी कारण वो विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन से जुड़ गए। 19 अप्रैल 1954 को बिहार के गया में उन्होंने आचार्य विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन को अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने की घोषणा की। 1957 में उन्होंने लोकनीति के पक्ष में, राजनीति छोड़ने का फैसला लिया। राजनीति छोड़ने के बाद भी JP सामाजिक सरकारों से जुड़े रहे और अपना काम करते रहे। नव निर्माण क्रांतिकारी अहिंसक नव निर्माण के लिए चल रहे सर्वोदय आंदोलन को जेपी ने अपने नेतृत्व से एक नया जीवन दिया।

जेपी आन्दोलन:

           1974 में जेपी राजनीति में फिर सक्रिय हुए। बिहार में किसानों के आंदोलन का नेतृत्व करते हुए JP ने तत्कालीन बिहार सरकार से इस्तीफा मांगा। साल 1974 में जयप्रकाश नारायण भारतीय सियासत में एक कटु आलोचक के रूप में उभरे। JP का मानना था कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार अलोकतांत्रिक होती जा रही थी। 1975 में निचली अदालत ने इंदिरा गांधी के 1971 के आम चुनाव में रायबरेली से लड़े गए चुनाव को अवैध करार दिया। इस पर जेपी ने इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग की बदले में इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल में JP सरीखे बहुत से नेताओं को कैद कर लिया गया। JP की गिरफ्तारी से भ्रष्टाचार विरोधी इन आंदोलनों में आग सी लग गई थी। जनसंघ, कांग्रेस (ओ) और भारतीय समाजवादी पार्टी जैसी कई पार्टियां कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने के लिए एकजुट हो गई। जयप्रकाश ने गैर साम्यवादी पार्टियों को एक साथ लाकर जनता पार्टी का गठन किया। JP राजनीति से दूर रहना चाहते थे लेकिन महात्मा गांधी और विनोबा भावे की पाठशाला ने उन्हें जन-जन का नेता बना दिया था। बिहार में छात्रों और किसानों के आंदोलन का नेतृत्व करते हुए जेपी को लोकनायक की उपाधि से नवाजा गया। 1977 में जब आपातकाल खत्म होने के बाद फिर से आम चुनाव हुए तो जेपी की जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी सरकार को धूल चटा दी। बिहार के उन छात्र आंदोलन में जब जेपी को नेतृत्व के लिए बुलाया गया तो जेपी ने अपनी अस्वस्थता जाहिर की थी लेकिन छात्र नेता जिनमें लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव, सुशील मोदी और रामविलास पासवान जैसे छात्र नेता शामिल थे, जेपी को छोड़ने को छोड़न कोई इरादा नहीं था। आखिर 1974 में जेपी ने छात्र आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया। 7 अप्रैल 1974 को पटना के ऐतिहासिक मौन जुलूस निकाला गया। 5 जून 1974 को जेपी ने पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में छात्रों और किसानों के विशाल जन सैलाब को संबोधित करते हुए "संपूर्ण क्रांति" का आह्वान किया था। यह वही दिन था जब जयप्रकाश को लोकनायक की उपाधि से नवाजा गया था। JP ने आह्वान किया था कि "भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी खत्म करना और शिक्षा में क्रांति लाना जेसी बुनियादी परिवर्तन मौजूदा व्यवस्था से संभव नहीं हो सकता है। क्योंकि मौजूदा हालात इसी व्यवस्था की ही उपज है।" अतः वो महज राजनीतिक बदलाव तक ही संतुष्ट होने वाले नहीं थे बल्कि व्यवस्था में विस्तृत और आमूलचूल परिवर्तन चाहते थे और इस संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए संपूर्ण क्रांति अनिवार्य है संपूर्ण क्रांति में सात क्रांतियां शामिल थी- राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति। JP ने इन सातों क्रांतियों को मिलाकर संपूर्ण क्रांति का नारा दिया, संपूर्ण क्रांति की तपिश इतनी अधिक थी कि उसमें केंद्र की ताकतवर सत्ताधारी सरकार भी तब खाक हो गई। जेपी की हुंकार पर छात्रों का विशाल जत्था अब सड़कों पर निकल पड़ा था। बिहार से उठी यह संपूर्ण क्रांति की लौ अब पूरे देश में घर-घर में ज्वालामुखी के रूप में प्रज्वलित हो उठी थी और जेपी लोकनायक अब इस क्रांति के पर्याय बन चुके थे।
           उनको समर्पित करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर ने कहा
    "वह देखो दलित देश का त्राता है।
     वह देखो सपनों का दृष्टा,
        जयप्रकाश भारत का भाग्य विधाता है॥"
           जयप्रकाश नारायण अपने संपूर्ण जीवन में भारत और भारतीयों की सेवा में लगे रहे। मां भारती के इस सपूत ने अपनी अंतिम सांसे 8 अक्टूबर 1989 को ली और उन्होंने इस भू-लोक को अलविदा कहा लेकिन भारतीय जनमानस में लोकनायक अमर ही रहेंगे।
           राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां हैं
    "है जयप्रकाश वह नाम, जिसे इतिहास आदर देता है।
    पढ़कर जिसके पदचिन्हों को, उन पर अंकित कर देता है।
    कहते है जो यह प्रकाश को, नहीं मरण से जो डरता है।
    ज्वाला को बुझते देख कूद कुंड में स्वयं जो पड़ता है॥"

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